SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋषभ और महावीर नहीं ! ऐसे ही आ गया। आप आए हैं तो आने का कारण बताएं। मैं आपके पास चंदा मांगने आया था पर अब इच्छा नहीं है। इच्छा क्यों नहीं है? क्या बात है? आपको क्या जरूरत है? आगन्तुक ने सारी बात बतलाई । लालाजी ने तत्काल दस हजार रुपये का अनुदान दे दिया। आगन्तुक विस्मय से भर गया। उस जमाने में दस हजार रुपये भी बहुत मूल्य रखते थे। आगन्तुक से रहा नहीं गया। उसने कहा—लालाजी ! एक बात पूछना चाहता हूं। आपने दो-तीन तीलियों के लिए नौकर को डांट दिया और मुझे एक साथ दस हजार रुपये दे दिए। मैं आपके इस व्यवहार का रहस्य नहीं समझा। ___लालाजी बोले-तुम जानते नहीं हो । मुझे फिजूलखर्ची एक पैसा भी बर्दाश्त नहीं है और जहां आवश्यकता है, वहां दस हजार की जगह लाख लग जाएं तो भी चिंता नहीं है। जागरूकता का निदर्शन यह जीवन का एक बड़ा सूत्र है। आज इस बात को लोग पकड़ नहीं पा रहे हैं । यदि यह सूत्र पकड़ में आ जाएं तो अनेक समस्याएं हल हो जाएं । महावीर के जीवन-दर्शन से व्यवहार का यह सूत्र प्रस्फुटित होता है- आवश्यकता और अनावश्यकता का विवेक, अर्थ और अनर्थ का विवेक । भगवान् महावीर ने इस तथ्य को समझा था—मेरे लिए कितनी नींद लेना आवश्यक है और कितनी नींद लेना अनावश्यक । इस आधार पर भगवान् महावीर ने अपने जीवन की पूरी चर्या बनाई और वे उस चर्या के अनुरूप चलते रहे । महावीर के सामने अतिनिद्रा का प्रश्न नहीं था और अनिद्रा का प्रश्न भी नहीं था। महावीर की नींद न नींद थी, न अनींद थी किंतु जागरूक नींद थी। वे जब चाहा वे सो गए । अन्तर्मुहूर्त नींद भी उन्होंने एक साथ नहीं ली। कभी दो क्षण नींद ली, कभी चार क्षण नींद ली। वे एक साथ अधिक नहीं सोए। अगर कोई डायरी लिखने वाला होता, नींद का समय और स्थान लिखने वाला होता तो अन्तर्मुहूर्त की नींद के विवरण से शायद पूरी डायरी भर जाती । यह महावीर की जागरूकता का निदर्शन है। समाधान है कायोत्सर्ग महावीर का जीवन-दर्शन जागरूकता का जीवन-दर्शन है । उन्होंने जागरूकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy