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________________ ९ ऋषभ और महावीर है, वैसे ही सृष्टि का अस्तित्व है, वनस्पति आदि का अस्तित्व है। जैसे-जैसे यह अनुभूति स्पष्ट और प्रखर होती चली जाएगी वैसे-वैसे हमारी जागरूकता बढ़ती चली जाएगी। जागरूकचर्या का आधार है-पूरे प्राणी जगत के साथ एकात्मता । केवल प्राणी जगत् के साथ ही नहीं, पुद्गल जगत् के साथ भी एक विशेष प्रकार की अनुभूति होनी चाहिए। एक निर्जीव वस्तु को भी बिना मतलब इधर-उधर रखना असंयम है । जीव का असंयम होता है तो अजीव का भी असंयम होता है। इसका अर्थ है-अजीव पदार्थ को भी बिना प्रयोजन इधर-उधर करना अच्छा नहीं है । भगवान् महावीर ने जाकरूकता का जो सूत्र दिया, जिस जागरूकता को महावीर ने जिया, उसका आधार सूत्र है-दूसरे के अस्तित्व की स्वीकृति । जागरूकता का दूसरा आधार है-उपधि का अल्पीकरण । उपधि आदमी को भटकाती है। उपधि के कारण व्यक्ति में अहंकार प्रबल बनता है। मनुष्य में इतना अहंकार है कि वह दूसरों के अस्तित्व को जानते हुए भी उसकी स्वीकृति नहीं देता। अहंकार से भरा व्यक्ति अपनी स्थिति का भी सही बोध नहीं कर पाता । सुकरात के पास एक बड़ा जमींदार आया। वह अहंकार से भरा हुआ था। सुकरात ने पूछा- क्यों आए हो? आपसे ज्ञान की बात सुनने आया हूं। तुम कहां से आए हो। मैं इस शहर का प्रसिद्ध जमींदार हूं, सामन्त हूं। मैं अपार वैभवशाली हूं, संपत्तिशाली हूं। तुम सामने पड़े विश्व के मानचित्र को लाओ। वह उठा और विश्व का मानचित्र ले आया। इसमें यूरोप कहां है ? जमींदार ने एक छोटे से हिस्से पर अंगुली टिकाते हुए कहायह यूरोप है? इसमें यूनान कहां है? जमींदार ने यूरोपीय भू-भाग में एक बिन्दु पर अंगुली टिकाई । उसने कहायह यूनान है। इसमें तुम्हारी जमींदारी कहां है ? जब यूनान ही एक बिन्दु जितना है तब मेरी जमींदारी इसमें कहां दिखाई देगी? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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