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वर्धमान : जागरूकचर्या
तुम्हारी इतनी बड़ी जमींदारी इस नक्शे में नहीं आ सकती। नहीं महाराज !
विश्व के मानचित्र में एक बिन्दु जितनी भी तुम्हारे पास जमीन नहीं है और तुम उसका घमण्ड करते हो ! मेरा यही उपदेश है-तुम घमण्ड को छोड़ो।
जमीदार का अहंकार चूर-चूर हो गया।
जिस आदमी को अपनी सामान्य धन-संपत्ति पर अहंकार होता है, वह जागरूक नहीं बन सकता। मूर्छा में पड़ा रहता है। किन्तु जब वह इस विराट् संसार को देखता है तो उसे लगता है—वह कुछ भी नहीं है। जागरूकता : जीवन का अंग
महावीर ने जागरूकता का दर्शन ही नहीं दिया किन्त उसे अपने जीवन का मुख्य अंग बनाया। हम आचारांग सूत्र के नौवें उद्देशक को पढ़ें, उसमें महावीर का जीवन-दर्शन उपलब्ध है। उसे जाने बिना, जिए बिना केवल महावीर की गाथा गाने से हमारे हाथ कुछ नहीं आएगा। जब तक हम महावीर की जागरूकता के आधार-सूत्रों को नहीं पकड़ेंगे तब तक हम जागरूकता का जीवन नहीं जी पाएंगे। जागरूकता के दो आधार आधार-सूत्र प्रस्तुत हुए हैं। पहला है—प्राणी-मात्र के अस्तित्व का स्वीकार और उसके साथ एकात्मता की अनुभूति । दूसरा है-मूर्छा का अल्पीकरण । जैसे-जैसे ये दो कारण जीवन में घटित होते हैं, वैसे-वैसे प्रमाद घटता चला जाता है, जागरूकता बढ़ती चली जाती है।
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