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वर्धमान : जागरूकचर्या
स्रोतों की खोज की जा रही है। वैज्ञानिक चिंतित हैं—ऊर्जा के बिना काम कैसे चलेगा? आज सारा वैज्ञानिक विकास विद्युत् के विकास पर टिका हुआ है। अगर एक ईंधन समाप्त हो जाता है तो वैज्ञानिक युग समाप्त होता है। भूमि में न जाने कितने काल से पेट्रोल भरा हुआ था। उसको किसी ने भी नहीं निकाला। उसे निकालना वैज्ञानिक युग की विशेषता है किन्तु पेट्रोल को इतना निकाला जा रहा है, जिसकी कोई सीमा नहीं है। सौ वर्ष बाद आने वाली पीढ़ी कहेगी-हमारे पूर्वजों ने हमारे साथ अन्याय किया, अत्याचार किया। हमारे पूर्वज खूब संपन्नता से रहे, उन्होंने पेट्रोल आदि पदार्थों का बहुत उपयोग किया किन्तु हमारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। क्या वह अपनी दरिद्रता के लिए अपने पूर्वजों को नहीं कोसेगी? हमारे पूर्वजों ने संयम किया, कठोर जीवन जीया, उसका परिणाम हम आज भोग रहे हैं। वे कठिनाइयां सहकर हमारे लिए सुविधा का मार्ग छोड़ गए। यदि वर्तमान जीवन की परिचर्या देखें तो यह प्रश्न गंभीर बन जाता है-जितना असंयम और भोग आज की पीढ़ी में चल रहा है उसका भावी पीढ़ी पर क्या असर होगा? हमारे पूर्वजों ने जो जीवन जीया, वह हमारे लिए वरदान बन गया किंतु आज हम जो जीवन जी रहे हैं, वह भावी पीढ़ी के लिए अभिशाप नहीं बनेगा? हम भावी पीढ़ी को सब दृष्टियों से दरिद्रता की ओर ढकेलते जा रहे हैं, यह समझदारी की बात नहीं है। जागरूकता का आधार सूत्र
भूमि का अतिरिक्त दोहन सचमुच समस्या पैदा कर रहा है। जैसे—भूमि की समस्या है वैसे ही पानी की समस्या है। महावीर ने कहा-मूर्छा और भोग का अल्पीकरण करते चले जाओ। यह एक महान् सिद्धांत है किन्तु इसे कोई महत्त्व नहीं दिया गया। पानी का अपव्यय किया जा रहा है और वह समस्या बन रहा है। ईंधन की समस्या भी स्पष्ट है और वह बढ़ती ही चली जा रही है। हवा की भी समस्या बन जाएगी। एक समय था—जो सहज हवा चलती थी, व्यक्ति उसमें ही संतोष मान लेता था। वह स्वाभाविक जीवन था। किंतु आदमी से रहा नहीं गया। उसने पंखिया बनाईं, पंखे बन गए । आजकल कृत्रिम रूप से हवा बटोरने के न जाने कितने साधन बन गए हैं। संभव है-हवा के साधन भी किसी दिन और अधिक खतरनाक बन जाएं । वनस्पति की समस्या भी कम नहीं है । यह सारी पर्यावरण की समस्या सृष्टि संतुलन के लिए एक बड़ा खतरा है। ___भगवान् महावीर ने पांच स्थावर-काय की जो बात कही, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। स्थावर जगत् के साथ एकात्मता की अनुभूति होनी चाहिए। जैसे हमारा अस्तित्व
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