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ऋषभ और महावीर
सृष्टि, पशु सृष्टि से लेकर वनस्पति, वायु, अग्नि, पानी और मिट्टी-इन सबका अस्तित्व है। महावीर ने इन सबके साथ एकात्मता स्थापित की और वे जागरूक बन गए। जब तक प्राणीजगत् के साथ एकात्मता या अनुभूति नहीं होती तब तक किसी भी आचरण में जागरूकता आ जाए, यह संभव नहीं है। आज चलता हुआ आदमी बिना आवश्यकता के ही टहनियों को तोड़ता चला जाता है। ऐसा व्यक्ति कभी भी जागरूक नहीं बन पाता, उनके साथ एकात्मता की अनुभूति नहीं कर पाता। अगर एकात्मता की अनुभूति हो जाए तो वह ऐसा कार्य नहीं कर सकता। संदर्भ पर्यावरण की समस्या का
महावीर की जागरूकता व्यक्तिगत जागरूकता नहीं थी। उनकी जागरूकता सारे संसार की जागरूकता थी। उन्होंने जो दर्शन दिया, वह आज की समस्या के समाधान का दर्शन है। आज के वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं—जिस तरह पानी का अपव्यय किया जा रहा है, एक समय ऐसा आ सकता है, जब पीने का पानी भी सुलभ नहीं होगा। आज कहा जा रहा है-पानी का कम उपयोग करें, आवश्यकता से अधिक पानी का व्यय न करें। हमारी प्राचीन कहावत है—पानी को घी जैसे बरतो, पानी का घी की तरह प्रयोग करो। यह धारणा बहुत महत्त्वपूर्ण थी।
सृष्टि संतुलन शास्त्र आधुनिक विज्ञान के लिए विज्ञान की एक नई शाखा हो सकती है किन्तु संतुलन का जो सत्र महावीर ने दिया, वह आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा-जो पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति के अस्तित्व को अस्वीकार करता है वह अपने अस्तित्व को अस्वीकार करता है। अपने अस्तित्व के समान उनका अस्तित्व है। हम इस तुला से तौलें तो न केवल अहिंसा का सिद्धांत फलित होता है अपितु पर्यावरण विज्ञान की समस्या को भी महत्त्वपूर्ण समाधान प्राप्त होता है। यह आवश्यक है—हम अहिंसा को केवल धार्मिक रूप में ही प्रस्तुत न करें । महावीर ने जो कहा, उसका प्रस्तुतिकरण केवल धर्म की भूमिका पर न करें। यदि उसे वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में प्रस्तुत किया जाए तो मानव जाति को एक नया आलोक उपलब्ध हो सकता है। भावी पीढ़ी क्या सोचेगी ___आज पैट्रोल बहुत मिलता है। उससे मोटरें चल रही हैं, बसें चल रही हैं। वैज्ञानिकों का कहना है—यदि इसी गति से पेट्रोल का उपयोग होता रहा तो सौ वर्ष के बाद पेट्रोल समाप्त हो जाएगा। ईंधन समाप्त हो जाएगा, आज ईंधन के नए
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