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निर्वाणवाद के प्रवक्ता : भगवान् महावीर (२)
प्रवृत्ति की बाती, निवृत्ति के तैल से जले
प्रकाश फैले, धुआं न निकले। समस्या प्रवृत्ति से ___निर्वाणवादी दर्शन या निर्वाणवादी जीवन शैली का मुख्य सूत्र है निवृत्ति । प्रश्न हुआ—जीवन कैसे चले? कहा गया-प्रवृत्ति से। किन्तु प्रवृत्ति निवृत्ति से जुड़ी हुई होनी चाहिए । या तो केवल निवृत्ति का जीवन हो और यदि प्रवृत्ति का जीवन हो तो उसकी पृष्ठभूमि में निवृत्ति का सूत्र होना चाहिए। निर्वाणवादी जीवन शैली का अर्थ है-निवृत्ति शून्य कोई भी प्रवृत्ति न हो । केवल प्रवृत्ति आज समस्या बनी हुई है। जिस प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि में निवृत्ति नहीं है, संयम नहीं है, उस प्रवृत्ति ने एक ओर अणुबम का निर्माण किया है, दूसरी ओर अमीरों का निर्माण किया है, तीसरी ओर निरंकुश शासकों का निर्माण किया है । केवल प्रवृत्ति से ये सारी समस्याएं पैदा हुई हैं। विकास की परिभाषा
प्रवृत्ति का निरोध संभव नहीं है। जहां जीवन है वहां प्रवृत्ति होगी। प्रवृत्ति को छोड़ा नहीं जा सकता। महावीर ने निर्वाण का जो दर्शन दिया, उसका निष्कर्ष है-प्रवृत्ति हो पर उसकी पृष्ठभूमि में निवृत्ति रहे । निवृत्ति के दीवट पर प्रवृत्ति का दीप जले और वह निवृत्ति के तैल से जले। इस स्थिति में प्रवृत्ति संहारक नहीं होगी, निरंकुश नहीं होगी, समाज में अव्यवस्था फैलाने वाली नहीं होगी। हरबर्ट स्पेन्सर ने विकास की एक परिभाषा की । वह परिभाषा डार्विन के विकासवाद के विरोध में मानी जाती है । स्पेन्सर का मत है—एकता से अनेकता की ओर, सरलता से जटिलता की ओर, अव्यवस्था से व्यवस्था की ओर जाने का जो उपक्रम है, उसका नाम है विकास । विकास की पृष्ठभूमि में अविकास
यह विकास की सही परिभाषा है। जहां भौतिक विकास का प्रश्न है, वहां यह
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