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निर्वाणवाद के प्रवक्ता : भगवान् महावीर (२)
परिभाषा संगत प्रतीत होती है । यौगलिक युग में सरलता थी। जैसे ही राजतंत्र का युग आया, जटिलता शुरू हो गई। सरलता से जटिलता की ओर प्रस्थान होने लगा । जैसे ही कर्मयुग प्रारम्भ हुआ, एकता अनेकता का रूप लेने लगी, अनेक वर्ग विकसित हो गए । यौगलिक युग में कोई व्यवस्था नहीं थी, सब कुछ स्वतःचालित था । उस युग की समाप्ति के साथ-साथ व्यवस्था का क्रम शुरू हो गया । यह विकास की प्रक्रिया है। निर्वाण अविकास की प्रक्रिया है । प्रवृत्ति विकास का सूत्र है । निवृत्ति अविकास का सूत्र है । जिस विकास की पृष्ठभूमि में अविकास नहीं होता, वह विकास खतरनाक बन जाता है । इन तीन बातों पर ध्यान केन्द्रित होना आवश्यक है- अनेकता की पृष्ठभूमि में एकता बनी रहे, जटिलता की पृष्ठभूमि में सरलता बनी रहे, व्यवस्था की पृष्ठभूमि में अव्यवस्था बनी रहे ।
अव्यवस्था का मतलब है सहज जीवन, यौगलिक जीवन । ऐसी भूमिका का निर्माण, जिसमें व्यवस्था की जरूरत ही न रहे । उपशान्त क्रोध, उपशांत मान, उपशांत माया और उपशांत लोभ की स्थिति में इस भूमिका का निर्माण होता है। इस स्थिति में व्यवस्था अकिंचित्कर बन जाती है, उसकी कोई अपेक्षा नहीं होती । यह है प्रवृत्ति के नीचे रहा हुआ निवृत्ति सिद्धांत। यह ठीक चलता है तो जीवन ठीक चलता है । निवृत्ति : निर्वाण का मूल सूत्र
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महावीर के निर्वाण का मूल सूत्र है निवृत्ति । उसे निष्कर्म कर्म कहें, अनासक्त योग कहें या मानसिक शान्ति - तीनों परस्पर जुड़े हुए हैं। मानसिक शान्ति कब आती है ? जब निष्काम भावना, अनासक्त भावना विकसित होती है तब मानसिक शान्ति घटित होती है । निष्काम भाव का विकास तब संभव बनता है जब निवृत्ति का सूत्र व्यक्ति के हाथ लगता है । प्रत्येक व्यक्ति अपेक्षा रखता है— व्यक्ति एवं समाज में अनासक्ति का भाव जागे, निष्काम भावना का विकास हो । यह निवृत्ति का सिद्धान्त है । व्यक्ति कहता है— निष्काम सेवा करो, कामना मत करो। वस्तुत: यह निर्वाण का दर्शन है । बहुत बार आदमी तात्पर्य को समझ नहीं पाता। जहां मूल बात को सूक्ष्मता से नहीं पकड़ा जाता वहां सही अर्थ को जानना कठिन हो जाता है । बड़ी से बड़ी प्रवृत्ति करने वाला, प्रवृत्ति का समर्थन करने वाला व्यक्ति भी यह 'अपेक्षा रखता है— समाज निष्काम सेवा वाला बने, समाज उदात्त चिन्तन वाला बने, समाज अच्छा बने, उसमें बुराइयां और अपराध न पनपे । यदि निवृत्ति नही है, संयम नहीं है, निष्काम चेतना नहीं है तो ये सारी बातें संभव नहीं बन पाएंगी।
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