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ऋषभ और महावीर .
और ऐशानेन्द्र जैसे देवताओं में भी सीमा विवाद चलता है । उसे सुलझाने के लिए तीसरे लोक का इन्द्र आता है । वह दोनों के बीच मध्यस्थता करता है । वह आदेश देता है-लड़ो मत । युद्ध बंद करो। मैं सीमा का निर्धारण करता हूं। यह देवताओं की स्थिति है। सुख के तीन प्रकार __अव्याबाध सुख है कहां? जहां पदार्थ है, ममत्व है, मूर्छा है, वहां अव्याबाध सुख हो नहीं सकता। तत्त्वार्थभाष्य में सुख का बहत सुन्दर विश्लेषण किया गया है। उसमें तीन प्रकार के सुख माने गए हैं
• स्थूल पदार्थ सापेक्ष सुख • सूक्ष्म पदार्थ सापेक्ष सुख • पदार्थ निरपेक्ष सुख
रोटी की जरूरत पड़ी, रोटी मिल गई और सुख हो गया। पानी की अपेक्षा थी, पानी मिल गया और सुख हो गया। यह स्थूल पदार्थ सापेक्ष सुख है। सूक्ष्म पदार्थ सुख में स्थूल पदार्थ की जरूरत नहीं होती । सूक्ष्म पुद्गल मिले और सुख पैदा हो गया। ऐसा सुख ईर्यापथिकी क्रिया में होता है, देवताओं को होता है। वहां स्थूल पदार्थ का भोग नहीं होता। केवल सूक्ष्म पदार्थ, सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण होता है और तृप्ति मिल जाती है । उच्चकोटि के देवताओं में जब काम चेतना जागती है तब वे पदार्थ का भोग नहीं करते। वे संकल्प करते हैं और उससे उन्हें तृप्ति मिल जाती है। इसे सूक्ष्म पदार्थ सापेक्ष सुख कहा गया है। स्थूल पदार्थ सापेक्ष सुख और सूक्ष्म पदार्थ सापेक्ष सुख–दोनों पदार्थ सापेक्ष हैं, पदार्थ प्रतिबद्ध सुख हैं । पदार्थ निरपेक्ष सुख केवल आत्मा से होने वाला सुख है। अव्याबाध सुख वही हो सकता है जो केवल आत्मा से उपजता है। जिस सुख में कोई बाधा नहीं पहुंचा सकता, जिसमें न पदार्थ की जरूरत है, न सूक्ष्म पद्गल स्कंधों की जरूरत है, वह आत्मिक सुख है, अव्याबाध सुख है, पदार्थ निरपेक्ष सुख है। महावीर : निर्वाण के प्रवक्ता ___भगवान् महावीर ने निर्वाण के सिद्धान्त को व्यापक रूप में प्रस्तुत किया। निर्वाण का एक स्वरूप है सिद्धि । निर्वाण का अर्थ है सारी सिद्धियों का प्राप्त होना व्यक्ति को लोकाग्र में ऐसा स्थान मिलता है, जहां प्रदूषण नहीं है, पर्यावरण की समस्या नहीं है, कोई उपद्रव नहीं है, अकल्याण नहीं है। निर्वाण प्राप्त व्यक्ति उस स्थान में
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