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से स्वयं का केश लुंचन कर लिया । युद्ध से अयुद्ध की ओर प्रस्थान
चक्रवर्ती भरत इस दृश्य को देखकर विस्मयाभिभूत हो उठे । उन्होंने सोचा - यह क्या हो गया ? बाहुबली के इस प्रस्थान के प्रति प्रणत हो गए। बाहुबली ने अपने विजय को प्रदीप्त बना दिया। जहां त्याग होता है वहां विजय होती है, सुख और शांति का साम्राज्य विस्तार पाता है। अगर बाहुबली त्याग नहीं करते तो प्रलय हो 'जाती । दो में से एक को त्याग करना होता है । बाहुबली का त्याग अहंकार का उदात्तीकरण है— युद्ध से अयुद्ध की ओर प्रस्थान है, विजय को महाविजय में बदलने का पराक्रम है ।
ऋषभ और महावीर
यह भरत और बाहुबली के चरित्र की संक्षिप्त चर्चा है। उसके आदि बिन्दु को बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। भाई लड़े, इस बात को शोभास्पद नहीं कहा जा सकता, किन्तु इस चरित्र की जो परिणति है, वह वस्तुत: एक निदर्शन है । भावावेश में भाई लड़ भी लेते हैं पर वे कैसे संभल जाते हैं, कैसे बदल जाते हैं ? इसका उदाहरण है भरत और बाहुबली का जीवन चरित्र । इस चरित्र का संदेश है - त्याग के द्वारा ही समस्या का समाधान किया जा सकता है । यह महान् चरित्र व्यक्ति के भीतर त्याग की चेतना जगाने में सक्षम बने, विश्व की समस्याओं को समाधान का नया आयाम दे, यही अभीष्ट है ।
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