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भरत और बाहुबली
कभी नहीं छोड़ते।
राजन् ! यदि यह भूमि रूपी सुन्दरी तुमको वश में कर लेती है तो बड़ों को सम्मान देने की यह विधि मूलत: विधुर हो जाएगी।
इन्द्र के वज्र की तरह प्रचंड प्रहार करने वाली तुम्हारी इस मुष्टिका को संसार में कौन सहन कर सकता है ? तुम भरत द्वारा आचीर्ण चरित्र को मन से भी याद मत करो, जैसे श्रमण पूर्वकृत काम-क्रीड़ा को याद नहीं करता। __राजन् ! तुम मुनिपद की साधना करो, साधना करो। तुम शीघ्रता से सरस शान्तरस का आसेवन करो। हे ऋषभदेव के वंशरूपी आकाश के सूर्य ! तुम्हारा मन आत्म कल्याण के लिए अग्रसर हो । मैं क्या करूं
बाहुबली ने इस ध्वनि को सना
आप क्रोध मत करो। आप विजयी हैं, शक्तिशाली हैं, ऋषभ के पुत्र हैं । आप अपने भाई की तरफ ध्यान मत दो, अपने पिता की ओर देखो। आप अपने भाई के मार्ग का अनुसरण मत करो, आप अपने पिता के मार्ग का अनुसरण करो। हम मानते हैं-भरत ने जो किया, वह उचित नहीं है। आप उसकी ओर ध्यान न देकर शान्त रस का पान करें। आप अपनी इस मुट्ठी को खोलें, कल्याण के मार्ग पर प्रस्थान करें। ___बाहुबली ने सोचा-सही बात कही जा रही है, भाई पर मुक्का उठाना अच्छा नहीं है। भाई को मारूंगा तो एक कलंक लग जाएगा। भविष्य में हमारा उदाहरण देते हुए कहा जाएगा—ऋषभ के पुत्र ऐसे लड़े थे। बाहुबली ने अपने बड़े भाई को मारा था। यह मेरा नहीं, ऋषभ का अपमान होगा। अब भाई को मारना नहीं है। किन्त जो मक्का उठ गया, वह नीचे नहीं जा सकता। मैं क्या करूं? __कहा जाता है-जब देवता को गुस्सा आता है और वह सामने वाले व्यक्ति को मारने की स्थिति में नहीं होता है तब वह कहीं दूर एकान्त में जाकर लात का प्रहार करता है, सारी भूमि को कंपा देता है । वह इस प्रकार अपने गुस्से का रेचन करता है, उसे उपशान्त करता है।
बाहुबली का मुक्का उठा था अहंकार के साथ, भयंकर क्रोध के साथ । 'मैं क्या करूं' इस प्रश्न की गहराई में जाते ही बाहुबली को समाधान उपलब्ध हो गया। भरत को मारने के लिए उठा मुक्का स्वयं के सिर पर गिरा । बाहुबली ने उस मुष्टि
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