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________________ ६४ ऋषभ और महावीर संबोधन भरत के इस कृत्य को देख बाहुबली भयंकर आक्रोश से भर गए। उन्होंने सोचा-यह भाई है ? यह भाई नहीं है, दुश्मन है। जो सीमा और मर्यादा का अतिक्रमण करे, उसको उसका फल मिलना चाहिए। उनका आवेश प्रबल बन गया। बाहुबली बोले—मैं अभी दौड़ कर जाता हूं, भरत के सिर पर प्रहार करता हूं-भरत मेरा क्या करेगा? बाहुबली मुक्का तानकर भाई पर प्रहार करने के लिए सन्नद्ध हो उठे । और बातें अनहोनी हो सकती हैं पर बाहुबली का मुक्का खाली नहीं जाएगा। कहा जाता है-उस समय आकाश में ध्वनि हुई । भरत-बाहुबली महाकाव्य में उसका सुन्दर चित्रण किया गया है अयि बाहुबले ! कलहाय बलं, भवतोऽभवदायति चारु किमु? प्रजिघांसुरसि त्वमपि स्वगुरुं, यदि तद्गुरुशासनकृत् क इह? कलहं समवेहि हलाहलकं, यमिता यमिनोप्ययमा नियमात् । भवती जगती जगतीशसुतं, नयते नरकं तदलं कलहैः ।। नृपः ! संहर संहर कोपमिमं, तव येन पथा चरितच पिता। सर तां सरणिं हि पितुः पदवीं, न जहत्यनधास्तनया: क्वचन ॥ धरणी हरिणीनयना नयते, वशतां यदि भूप! भवन्तमलम्। विधुरो विधिरेष तदा भविता, गुरुमाननरूप इहाक्षयतः ।। तब मुष्टिमिमां सहते भुवि को, हरिहेतिमिवाधिकघातवतीम् । भरताचरितं चरितं मनसा, स्मर मा स्मर केलिमिव श्रमणः ।। अयि! साधय साधय साधुपदं भज शान्तरसं तरसा सररम्। ऋषभध्वजवंशनभस्तरणे! तरणाय मन: किल घावतु ते॥ हे बाहुबली ! तुम्हारा बल युद्ध के लिए प्रयुक्त हो रहा है। क्या यह भविष्य के लिए शुभ होगा? यदि तुम भी अपने बड़े भाई भरत को मारना चाहते हो तो इस संसार में बड़े भाई की आज्ञा मानने वाला दूसरा कौन होगा? __ तुम उस कलह को हलाहल विष के समान जानो, जिसका आश्रय लेकर संयमी मुनि निश्चय से असंयमी हो जाते हैं। यह पूजनीया पृथ्वी राजपुत्र को नरक में ले जाती है, इसलिए इसके लिए किए जाने वाले ऐसे कलह से हमें क्या? राजन् ! तुम अपने इस क्रोध का संहरण करो, संहरण करो। जिस मार्ग पर तुम्हारे पिता ऋषभ चले हैं, उसी मार्ग पर तुम चलो। सुपुत्र अपने पिता के मार्ग को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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