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भरत और बाहुबली
समाधि की दशा में चले गए।
भरत को चारों युद्धों में पराजित घोषित कर दिया गया। बाहुबली विजयी बन गए। भरत अपनी पराजय से आकुल-व्याकुल हो गए। उन्होंने सोचा-मेरी इतनी बड़ी सेना है, चौदह रत्न हैं। मैंने छ: खण्ड को अपने भुजबल से जीता है । मैं इस पराजय को सहन नहीं करूंगा। मैंने संकल्प किया था-शस्त्र का प्रयोग नहीं करूंगा पर समय आने पर सारे संकल्प टूट जाते हैं। वे भावावेश से भर गए, संभल नहीं सके। भरत का भावावेश : शर्त का उल्लंघन ___ आदमी का संकल्प तब तक चलता है, जब तक उसका भाव संतुलित रहता है। जब व्यक्ति का भाव असंतुलित बनता है तब सारी सीमाएं, सारी मर्यादाएं टूट जाती हैं । भावावेश में व्यक्ति को कुछ पता नहीं चलता। वह अपना भान भूल जाता है। भरत ने सुदर्शन चक्र हाथ में लिया, उसे उठाया, घुमाया और उसे बाहुबली के शिरच्छेद के लिए फेंक दिया।
चारों ओर कोलाहल मच गया।
आकाश में स्थित देवता और धरती पर खड़े मनुष्य बोल उठे-यह अन्याय है, शर्त का उल्लंघन है।
चक्रवर्ती भरत ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।
सुदर्शन चक्र अत्यन्त भयंकर शस्त्र होता है । दुनिया में सबसे ज्यादा शक्तिशाली अस्त्र ब्रह्मास्त्र माना जाता है। सुदर्शन चक्र उससे भी अधिक शक्तिशाली था। वह आग की लपटें उगलता जा रहा था। उसे देख सब घबरा उठे, सोचा-अब बाहुबली का काम समाप्त हो जाएगा। बाहुबली अडोल और अप्रकंप खड़े थे। उनका आत्मबल/मनोबल अजेय बना हुआ था। उन्होंने कहा—मेरी मुष्टि के एक प्रहार से यह चक्र चूर-चूर हो जाएगा।
चक्र बाहुबली के पास पहुंचा। उसने मारने की बजाय बाहुबली की प्रदक्षिणा शुरू कर दी। भरत ने सोचा-आज तो कोई बुरा दिन ही आ गया है। जो भी कार्य करता हूं वह विपरीत ही होता है। भरत घबरा उठा-चक्र बाहुबली के पास चला गया, अब क्या होगा? भरत इस चिन्तन से कांप उठा। किन्तु चक्र बाहुबली की प्रदक्षिणा कर भरत के पास वापस आ गया। भरत ने चक्र को पुन: पाकर सुख की सांस ली।
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