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________________ ६२ भी पराजित घोषित हुए । तीसरे प्रकार का युद्ध - मुष्टियुद्ध शुरू हुआ । भरत ने पहल की । उसने बाहुबली की छाती पर तेज मुक्का मारा। बाहुबली चीख उठे, पीड़ा से भर उठे । किन्तु तत्काल संभल गए। अब बाहुबली ने अपना मुक्का ताना और भरत पर तीव्र प्रहार किया । भरत बाहुबली के प्रहार को नहीं सह सके, भूमि पर गिर पड़े, मूर्च्छित हो गए। भरत को पुनः पराजय का मुंह देखना पड़ा । भरत की व्यथा ऋषभ और महावीर 1 भरत का मन व्यथा से भर गया । उसने सोचा- मैंने क्यों मुसीबत मोल ली ? मैं अपने घर में आराम से बैठा था, बहुत बड़ा राज्य मुझे प्राप्त था । छोटे भाई से न लड़ता तो क्या होता ? चक्र आयुधशाला में नहीं जाता, बाहर खड़ा रहता तो मुझे क्या मुसीबत थी ? मैंने क्यों सिर दर्द मोल लिया ? बचपन में भी बाहुबली कितना बलवान् था ! मुझे याद है - बाल्यकाल में एक बार बाहुबली ने मुझे गेंद की तरह आकाश में उछाल दिया। जब मैं पुन: गिरने लगा तब मेरे पिता ऋषभ ने कहा- अरे ! क्या कर रहे हो ? यह तुम्हारा बड़ा भाई है। बाहुबली ने पिता की बात मानकर मुझे तत्काल अपने हाथों में झेल लिया । भरत को बचपन के संस्मरण याद आने लगे - एक दिन भगवान् ऋषभ ने हमें खाने के लिए गन्ना दिया। मैं उसे अकेला खाने लगा। बाहुबली ने मुझसे ईख मांगा। मैंने इन्कार कर दिया। बाहुबली ने मेरे हाथ से जबरदस्ती छीन लिया। मैं मुंह ताकता रह गया। ऐसे अनेक संस्मरण भरत की आंखों के सामने तैरने लगे । लेकिन युद्ध के सिवाय उसके पास अब और कोई विकल्प नहीं था । दंडयुद्ध युद्ध का चौथा विकल्प था दंडयुद्ध । भरत ने अपना दंड उठाया। उस दण्ड से चारों तरफ आग की लपटें निकल रही थीं, अग्नि ज्वालाएं फूट रही थीं । भरत ने उस दंड से बाहुबली पर तीव्र प्रहार किया । बाहुबली घुटने तक जमीन में धंस गए। इस प्रकार से बाहुबली को भरत की शक्ति का अहसास हुआ। उन्होंने अपनी शक्ति का प्रयोग किया और बाहर निकल आए । अब बाहुबली ने अपना दंड संभाला । उसे जोर से घुमाते हुए भरत के सिर पर तीव्र वेग से प्रहार किया । भरत का मुकुट गिर गया, चक्रवर्तित्व का चिह्न उछल कर बहुत दूर जा गिरा। चक्रवर्ती भरत कंठ तक भूमि में धंस गए । मात्र इतना सा दिखाई दे रहा था - कोई आदमी है । वे पूरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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