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भरत और बाहुबली
एक बर्बरतापूर्ण कार्य बन गया, क्रूरता से भरा अमानवीय कृत्य बन गया।
प्राचीन समय में युद्ध की सीमा को स्वीकार किया गया । घोषणा की गई-कोई सैनिक नहीं लड़ेगा। सब सैनिक अपने शस्त्र भूमि पर गिरा दें। इस घोषणा के बाद सैनिकों ने शस्त्र डाल दिए । युद्ध-मंच रंग-मंच में बदल गया। सब प्रेक्षक बन गए। हिंसक युद्ध का अहिंसक युद्ध की दिशा में प्रस्थान हो गया। दृष्टि युद्ध
चार प्रकार के युद्ध की घोषणा हो गई–दृष्टियुद्ध, शब्दयुद्ध, मुष्टियुद्ध और दंडयुद्ध।
सारे सैनिक इस घोषणा को सुनकर उछल पड़े। उन्होंने सोचा-जिनको लड़ना है, वे लड़ें । हमें क्या लेना देना है युद्ध से । हमें इससे कोई मतलब नहीं है । बाहुबली जीत जाए तो हमें कुछ मिलने वाला नहीं है और भरत जीत जाए तो भी कुछ मिलने वाला नहीं है। हम सैनिक हैं, सैनिक ही रहेंगे। मिलेगा बाहुबली को, मिलेगा भरत को। जिन्हें कुछ पाना है, उन्हें ही लड़ना चाहिए. हम दोनों भाइयों का युद्ध देखेंगे, उनका पराक्रम देखेंगे, उनके युद्ध के साक्षी बनेंगे, द्रष्टा बनेंगे।
भरत और बाहुबली के बीच पहला युद्ध-दृष्टियुद्ध प्रारंभ हुआ। यह निश्चित था—जो आंख को पहले झपकएगा, वह हार जाएगा और जो आंख को नहीं झपकाएगा, वह जीत जाएगा। भरत ने अपनी तीव्र दृष्टि बाहुबली पर आक्षिप्त की। बाहुबली ने भरत पर अपनी तीव्र दृष्टि का प्रक्षेप किया। दोनों तीव्र दृष्टि से अपलक एक दूसरे को देखते रहे । घंटो बीत गए, प्रहर बीत गए। किसी की भी पलकें नहीं. झपकीं । मानों त्राटक सिद्ध हो गया। कुछ प्रहर बीतने के बाद भरत की आंखें थक गईं, भरत की आंखें झुक गईं। उस समय भी कोई रेफरी–निर्णायक रहा होगा। उसने घोषणा की-भरत की आंखें पहले मुंद गई हैं। भरत पराजित हो गया, बाहुबली विजेता घोषित हो गया। शब्दयुद्ध : मुष्टियुद्ध - अपनी हार से भरत लज्जित हुआ, संकुचित हुआ। उसने सोचा-इस हार का बदला शब्दयुद्ध जीतकर ले लूंगा। अब शब्दयुद्ध की बारी थी। भरत ने भयंकर सिंहनाद किया। आकाश-पाताल एक हो गए, समुद्र में ज्वार-भाटा आ गया, स्थितियां विकराल बन गईं, सारा विश्व प्रकंपित हो उठा। लोग भयभीत हो उठे। जैसे ही बाहुबली ने सिंहनाद किया, भरत का स्वर दब गया, मंद हो गया। भरत इस बार
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