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ऋषभ और महावीर
भगवान् ने पूछा-तुम राज्य को भोग रहे हो।
हां ! बड़े आनन्द से राज्य चला रहे हैं। कोई कठिनाई नहीं है।
अरे ! जरा सोचो ! जो राज्य मैंने दिया है अगर उससे बड़ा राज्य दूं तो क्या तुम तैयार हो देने के लिए?
हां ! बड़ा राज्य मिले तो कौन तैयार नहीं है ?
आज मैं बड़ा राज्य देने की बात सोच रहा हूं। इससे बहुत बड़ा राज्य दूंगा, जिसकी कोई सीमा नहीं है, कोई अन्त नहीं है। वह असीम और अनन्त है । क्या उसे तुम लेना चाहोगे?
क्यों नहीं लेगें ! कृपा है, आप अभी देना चाहते हैं तो हम तैयार हैं। लो सुनो पहले? मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। सुनाएं।
कहानी सब सुनाते हैं। भगवान् भी कहानी सुनाते थे। तृष्णा : उपमा
भगवान बोले-एक था अंगारकारक, अंगारा बनाने वाला। वह जंगलों में जाता, लकड़ियां काट-काट कर इकट्ठी करता और फिर उन्हें जलाकर अंगारे बनाता । ज्येष्ठ का महीना था। अत्यन्त भीषण गर्मी थी। तेज धूप तप रही थी, लूएं चल रही थीं। वह लकड़ी काटने के लिए चला । साथ में एक बोतल पानी था। मध्याह्न में प्यास लगी। उसने पानी पिया। बोतल खाली हो गई। थोड़ी देर बाद् पुन: प्यास लगी, पानी खत्म हो चुका था। वह प्यास से अकुलाने लगा। वह वृक्ष की ठंडी छांव में बैठकर विश्राम करने लगा। वृक्ष की शीतल छाया में उसे नींद आ गई।
व्यक्ति जिस बात को मन में लेकर सोता है, वही बात उसके अवचेतन मन में उभरने लगती है। उसे सपना आया—मुझे बहुत प्यास लगी है। मेरे पास पानी खत्म हो गया है। मैं प्यास बुझाने के लिए एक कुएं पर गया। मैं कुएं का सारा पानी पी गया फिर भी प्यास नहीं बुझी। उसके बाद मैं तालाब पर गया, तालाब का सारा पानी खाली कर दिया। नदी पर गया, नदी का सारा पानी पी गया, फिर भी प्यास नहीं बुझी । आखिर समुद्र पर गया और समुद्र का सारा पानी मैंने आत्मसात् कर लिया फिर भी प्यास मिटी नहीं। अगस्त्य ऋषि ने तीन चुल्लू में समुद्र का पानी पिया था, मैंने एक ही बार में समुद्र को सुखा डाला। उसका सपना आगे बढ़ा-मैंने अनुभव किया—अभी भी बहुत तेज प्यास लगी हुई है। क्या करूं? मैं रेगिस्तान
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