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जागो ! क्यों नहीं जाग रहे हो ?
संघर्ष को मिटाने का उपाय है- अतिरिक्तता का अर्जन किया जाए, किसी विशेषता को पाया जाए। ऋषभ के पुत्रों को लगा-भरत में कोई विशेषता नहीं है। हम क्यों जाएं इसके पास? अगर भरत जबर्दस्ती राज्य लेना चाहता है तो क्या हम उससे कम हैं ? हम भी उसी बाप के बेटे हैं, उससे कम नहीं हैं। अगर वह लड़ना चाहे तो हम भी तैयार हैं। उन्होंने पुन: सोचा-ऐसा करना अच्छा नहीं लगेगा। लोग कहेंगे-भाई-भाई लड़ रहे हैं। दोनों ओर समस्या है, क्या करें? एक उपाय उनके मानस में उभर आया। उन्होंने निर्णय लिया—पहले भगवान् के पास चलें। उनकी क्या आज्ञा है? जो उनकी आज्ञा होगी, वही काम कर लेंगे। यदि वे कहेंगे-लड़ो तो जरूर लड़ेंगे। वे कहेंगे—मत लड़ो तो नहीं लड़ेंगे । जैसा कहेंगे वैसा ही करेंगे। अपनी समस्या के समाधान के लिए सारे भाई भगवान के दर्शनार्थ चल पड़े। भगवान् उस समय हिमालय में थे। अष्टापद पर भगवान् का समवशरण हो रहा था । अष्टापद हिमालय की एक शाखा है और वह भगवान् ऋषभ की तपोभूमि रही है। भगवान् का विहार अधिकांशत: उसी प्रदेश में हुआ। अभी कुछ वर्ष पहले आचार्य विद्यानंदजी मिले। उन्होंने बताया हिमालय में भगवान् ऋषभ का मंदिर भी मिल गया है। सबकी एक समस्या है ____ अट्ठानवें भाई ऋषभ के चरणों में पहुंचे। वे वंदना कर बोले-भगवान् ! आज हम आपकी उपासना के लिए नहीं आएं हैं । हम एक समस्या लेकर आए हैं। आप हमारी समस्या का समाधान करें।
भगवान् ने कहा-क्या समस्या है ? सबकी समस्या एक ही है या अलग-अलग
सबकी एक ही समस्या है। क्या समस्या है?
भंते ! आपने हमें राज्य दिया किन्तु भाई भरत हमारे राज्य को छीनना चाहता है। यह समस्या है। आप बताएं- हम क्या करें? आप क्या परामर्श देते हैं? आपकी क्या आज्ञा है। जो आपकी आज्ञा होगी, हम वही करेंगे। भगवान् का प्रस्ताव
भगवान् ने देखा-बड़ी विकट समस्या है। यह कैसे कहा जाए—राज्य को छोड़ दो। यह भी कैसे कहा जाए लड़ो। क्या करना चाहिए? उस समय एक कशल मनश्चिकित्सक की भांति भगवान ने उनके चिन्तन को नया मोड दिया।
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