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________________ ऋषभ और महावीर किसकी सेवा ले। यह बात समझ में आ जाए तो सेवा लेने वाला अपने आपको ऊंचा बनाएगा, सेवा देने वाला अपने आप झुकेगा। जहां डंडे के बल पर सेवा ली जाती है, वहां हिंसा और प्रतिक्रिया चलती है। एक बड़ा प्रश्न है। हड़ताल, घेराव, तालाबंदी आदि क्यों हो रहे हैं? इस समस्या को हम इस सत्य के सन्दर्भ में देखेंजहां अतिरिक्तता नहीं है और सेवा ली जाती है, वहां समस्या पैदा होती है। ___ एक मंत्री ने अपने चौकीदार को लताड़ दिया। चौकीदार क्या करे? उसे मंत्री की डांट सुननी पड़ी किन्तु जैसे ही मंत्री इधर-उधर गया, कुछ चौकीदार आपस में मिले। उन्होंने कहा-कैसा जमाना आया है ! एक अस्थायी आदमी एक स्थायी कर्मचारी को लताड़ रहा है । इसे खुद के स्थायित्व का भरोसा नहीं है। आज आया है और कल चला जाएगा। कैसा निकम्मा आदमी है। इसका अपना कुछ भी नहीं है। बस कुर्सी पर आकर बैठ जाता है और हमें डांटता रहता है। क्या इसे पता है अपने स्थायित्व का? संघर्ष समाप्ति का उपाय जहां राज्य कर्मचारियों के मन में अपने अधिकारी के प्रति आदर का भाव नहीं होगा वहां संघर्ष निरन्तर चलेगा। संघर्ष को मिटाने का कोई उपाय नहीं है। संघर्ष तभी मिट सकता है जब व्यक्ति में अतिरिक्तता पैदा हो जाए, विशेषता पैदा हो जाए। व्यक्ति ऐसे गुणों का अर्जन करे जिससे अधीन रहने वाले अधीन रहना चाहे किन्तु किसी को अधीन रखना न चाहे । शिष्य गुरु के अधीन रहना चाहता है, किन्तु गुरु उसे अधीन रखना नहीं चाहते। भगवान् महावीर ने गौतम को कुछ दिनों के लिए अलग भेज दिया। उस समय उन्हें कैसा लगा? यदि महावीर में विशिष्टता नहीं होती तो गौतम महावीर के साथ रहना क्यों चाहते? क्या गौतम कम विद्वान थे? वे क्यों महावीर के पास रहते? वे महावीर से अलग रहना ही नहीं चाहते थे, किन्तु किसलिए? उनके रहने का आकर्षण था-महावीर की विशिष्टता। यह एक सुन्दर सिद्धांत है । जब तक इस सिद्धांत को नहीं अपनाया जाएगा तब तक जागतिक संघर्षों को कभी समाप्त नहीं किया जा सकेगा। भाइयों का निर्णय भरत के भाइयों ने, भगवान् ऋषभ के पुत्रों ने, अपने चिन्तन में एक ऐसे शाश्वत सत्य को प्रगट कर दिया, जो आज की ज्वलंत समस्या का समाधान है । जब व्यक्ति अपने साथियों, सहयोगियों को अधीन रखना चाहेगा तब संघर्ष का वातावरण बनेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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