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ऋषभ और महावीर
अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं। आप अपने पद को संभालें और अपने कार्यों से शांतिपूर्ण जीवन का मार्ग प्रशस्त करें।
यह राजतन्त्र के सूत्रपात का पहला क्षण था। यह समाज के आदिम युग के इतिहास का वह दिन था, जिस दिन राजतंत्र का सूत्रपात हुआ। राजतन्त्र का इतिहास बहुत लम्बा है किन्तु उसका आदि बिन्दु आदिम युग में है। मात्र हिन्दुस्तान का ही नहीं, पूरे विश्व का इतिहास राजतंत्र का इतिहास है । ऋषभ पहले राजा बने । राजाओं का राज्य स्थापित हो गया और राजा इतने प्रतिष्ठित हो गए कि राजा और देवतादो नहीं रहे। राजा की मान्यता भी देवता के रूप में होने लगी। जितना पूज्यनीय, सम्माननीय और आदरणीय देवता होता है उतना ही श्रद्धा और आदर का पात्र राजा बन गया। राजा की प्रतिष्ठा बढ़ती चली गई । पृथ्वी पर उससे बढ़कर कोई सामान्य व्यक्ति नहीं रहा। राजा एक दिव्य शक्ति बन गया। राजतन्त्र का उद्देश्य
जिस दिन ऋषभ के राजा बनने की घोषणा हुई, वह राजतंत्र के इतिहास का पहला क्षण था। राजतंत्र के इतिहास का पहला सूर्योदय हआ, सूर्य की पहली किरणें फूटीं । उसी दिन राजतंत्र की घोषणा हुई और विधिवत् समाज-व्यवस्था को चलाने का सूत्रपात हुआ। बड़ी मछली छोटी मछली को न निगल जाए। कोई भी व्यक्ति शक्तिशाली हो सकता है किन्तु वह अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करे, कमजोर या शक्तिहीन को सताए नहीं, उनके अधिकारों का हनन न करे, उनके शांतिपूर्ण जीवन में बाधा न डाले। इन सारी बातों के लिए राजतंत्र का उद्भव हुआ। आज ये विचार भी पुराने हो गए हैं। प्राचीनकाल में राजतंत्र के सूत्रपात के ये कारण बतलाए गए हैं किन्तु अरस्तु ने इन तर्कों को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा-यदि राजतंत्र होने का अर्थ यही है कि शक्तिशाली समाज या शक्तिशाली व्यक्ति दसरे को सताए नहीं, तो वैसा राजतंत्र कोई अर्थवान् राजतंत्र नहीं है । वास्तव में राजतंत्र के प्रवर्तक का उद्देश्य होना चाहिए-सद्गुणों का विकास । यही कारण स्थायी होता है, शाश्वत होता है और इसे ही महत्त्व दिया जा सकता है। जो राजतंत्र समाज में सद्गुणों का विकास न कर सके, जिसका उद्देश्य मात्र दण्ड देना ही रह जाए, वह अधिक समय तक टिक नहीं पाता । राजतंत्र में उदात्त नायक का चरित्र सामने आए तभी राजतंत्र की महिमा गाई जा सकती है। . यह दिल को छू लेने वाली बात है। राजतंत्र का उद्देश्य दण्डशक्ति के द्वारा केवल अपराध का नियंत्रण नहीं है। उसका उद्देश्य है-मानवीय गुणों का विकास ।
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