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राजतंत्र का सूत्रपात
३१ यह आज भी विवेचनीय विषय है- राजतंत्र के इतिहास में जैन आचार्यों का क्या-क्या अभिमत रहा है? उन्होंने उसे किस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बतलाया है ? समाज व्यवस्था : धर्म
ऋषभ केवल दण्ड देने के लिए राजा नहीं बने । वह एक पहलू हो सकता है। उन्होंने जो व्यवस्था दी, वह दो कोणों पर आधारित लगती है. वह राजतंत्रीय समाज अच्छा होता है, जहां अर्थ और पदार्थ का न अभाव होता है और न प्रभाव होता है। समाज के लिए अर्थ और पदार्थ का अभाव होना अच्छा नहीं है। उनका अभाव होना समाज के पतन का कारण है । उनका अभाव न होना, यह समाज व्यवस्था का अंग बन जाता है और उनका प्रभाव न होना, यह धर्म का अंकुश बन जाता है। इन दो अंकुशों के आधार पर ऋषभ ने राजतंत्र को संभाला। ऋषभ का राजा के पद पर विधिवत् अभिषेक हुआ। अभिषेक की लम्बी प्रक्रिया चली। ऋषभ राजकुमार से राजा बन गए, राज्य की व्यवस्था में जुट गए।
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