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ऋषभ और महावीर
ज्ञानत्रयधरो जातिस्मरः स्वामीत्यवोचत।
मर्यादोल्लंधिनां लोके, राजा भवति शासिता ॥ ऋषभ की विनम्रता
लोगों ने पूछा-राजा क्या होता है। ऋषभ बोले-एक राजा होता है, वह सबका शासक होता है। वह क्या करता है?
वह सबका मालिक होता है। उसकी एक राजधानी होती है, उसके पास सेना होती है। उसके पास दण्डशक्ति होती है। उसके कई सचिव होते हैं। वह सचिवों के परामर्श से राज्य का संचालन करता है। उसके पास उसका अपना एक तन्त्र होता है।
यह बहुत अच्छी बात है। क्या राजा बनने के बाद कोई अतिचार नहीं होगा? अतिक्रमण नहीं होगा?
ऐसा नहीं होगा, यह तो नहीं कहा जा सकता। किन्तु ऐसा करने वाला व्यक्ति दण्डित होगा। दण्डशक्ति के आधार पर व्यवस्था को ठीक रखा जाएगा। पदार्थ इधर-उधर नहीं ले जाए जाएंगे। इन पर नियमन होगा, अनुशासन होगा। जो नियमों का अतिक्रमण करेगा, उसे दण्ड दिया जाएगा।
जहां कोई शासन नहीं था, तंत्र नहीं था, वहां यह उपाय एक सुन्दर समाधान लगा।
लोगों ने कहा-आप ही ऐसा उपाय बता सकते हैं। आप ही हमारे राजा बन जाएं।
यह काम मेरा नहीं है। आप लोग नाभि के पास जाइए। वे मेरे पिता हैं, कुलकर हैं। आप उनसे अनुरोध करें-आप हमें राजा दीजिए। आप अनुरोध करेंगे तो वे राजा बन जाएंगे। राजा क्यों चाहिए?
सब लोग नाभि के पास गए। उन्होंने नाभि से अनुरोध किया--हमें राजा चाहिए। आप हमें राजा दीजिए।
नाभि ने पूछा-राजा क्या होता है ? उन्होंने सारी बात बताई।
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