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________________ २० ऋषभ का विवाह : नया मोड़ कुमार ऋषभ अतीन्द्रिय चेतना के धनी थे। उनके सारे जीवन का क्रम एक विशिष्टता लिए हुए था । ऋषभ का जीवन परिपूर्ण जीवन था । उन्होंने गृहस्थ का जीवन भी जीया। उन्होंने काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष - चार पुरुषार्थों का आश्रय लिया। हमें परिपूर्ण जीवन की कल्पना ऋषभ के जीवन से मिलती है। उन्होंने व्यक्तिगत जीवन के लिए बहुत किया, समाज के लिए बहुत किया, स्वयं के लिए किया, दूसरों के लिए किया। यदि किसी तीर्थंकर को समग्र जीवन के संदर्भ में देखा जाए तो कहा जा सकता है— ऋषभ का जीवन समग्रता का जीवन है । | कुमार अवस्था में चल रहे थे । कुमार अवस्था को अतिक्रांत कर वे युवा बने । उनका विवाह कर दिया गया। उनके विवाह में भी एक नया मोड़ आया । यौगलिक युग में बहुपत्नी प्रथा नहीं थी । बहुपत्नी प्रथा का प्रारम्भ ऋषभ से होता है । उत्तरकाल में बहुपत्नी प्रथा को बहुत मूल्य मिला। एक-एक राजा के सोलह हजार रानियां होती थीं, अस्सी हजार और एक लाख रानियां होती थीं। यह मानदंड बन गया जिसके जितनी अधिक रानियां वह उतना ही बड़ा आदमी। शायद इस प्रथा को प्रारंभ करने का श्रेय भगवान् ऋषभ को मिला। पहला अवसर था - - उनके दो पालियां हुईं - सुनंदा और सुमंगला । तब तक बहुपत्नी की प्रथा नहीं थी । एक जोड़ा जन्म लेता और वही पति-पत्नी के रूप में बदल जाता। कोई भी जोड़ा बीच में नहीं मरता, वे अंत समय तक एक साथ रहते, अकाल मृत्यु नहीं होती । अकाल मृत्यु का प्रसंग ही नहीं था — पर एक दुर्घटना घटी। एक जोड़ा था, उसमें पुरुष मर गया, स्त्री बच गई । उस एक एकाकी स्त्री को ऋषभ के साथ जोड़ दिया गया । सुनंदा और सुमंगला का ऋषभ के साथ विवाह हो गया । कुमार : दो अर्थ ऋषभ कुमार से विवाहित बन गए। कुमार शब्द के दो अर्थ हैं। उसका पहला अर्थ है—जब तक राजा जीवित होता है तब तक राज - कुमार कुमार कहलाता है । ऋषभ कुमार — क्वारे नहीं रहे, शादीशुदा हो गए। आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है— ऋषभ का विवाह हो गया फिर भी वे बड़े अनासक्त भाव से वैवाहिक जीवन जी रहे थे ऋषभ और महावीर 1 भोगान् स्वाम्यप्यनासक्तः, पत्नीभ्यां बुभुजे चिरम् । सवेदनीयमपि हि न कर्ण क्षीयतेऽन्यथा ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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