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________________ ऋषभ का अवतरण यह बात समझ में आने जैसी है । यदि व्यक्ति वैवाहिक जीवन जिए, काम-भोग का जीवन जिए और उसमें प्रबल आकर्षण हो तो वह न तीर्थंकर बन सकता है, न मोक्ष पा सकता है। एक तर्क दिया गया—जो मोक्षगामी है, मुनि से तीर्थंकर बनने वाला है, वह भोगता हुआ भी इतना अनासक्त रहता है कि उसमें लिप्त नहीं होता। ऋषभ की परिवार ऐसा लगता है—ऋषभ को बचपन से ही नया-नया काम करने की आदत पड़ गई । उन्होंने अनेक परम्पराएं तोड़ी। यौगलिक युग में एक युगल एक युगल को पैदा करता था। ऋषभ ने इस परम्परा को तोड़ा। उनके सौ पुत्र और दो पुत्रियां हुईं । सुमंगला ने निन्यानवें पुत्रों को जन्म दिया। सुनंदा ने बाहुबली को जन्म दिया। दो बहनें हुईं-ब्राह्मी और सुन्दरी । काफी ग्रन्थों में विवाद है-कौन किसका बेटा था और कौन किसकी बेटी थी। समवायांग के सूत्र के अनुसार इतना निश्चित हैसुमंगला भरत की माता थी। इससे यह सिद्ध होता है--सुनंदा बाहुबली की माता थी। ऋषभ का पूरा परिवार बन गया। उनका पुत्र भरत चक्रवर्ती बना। विकास के नये आयाम जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में ऋषभ का बहुत सुन्दर वर्णन उपलब्ध होता है. वे कितने आध्यात्मिक थे, इसका बहुत महत्त्वपूर्ण चित्रण किया गया है। उनके दोनों पुत्रभरत और बाहबली-अलग-अलग प्रकार के थे। उनकी दोनों कन्याएं ब्राह्मी और सुंदरी भी अलग प्रकार की थीं। भगवान् ने उन्हें पढ़ाया, उनसे बहुत काम लिया। स्त्रीशिक्षा की बात भी ऋषभ से जुड़ी हुई है। उनकी कन्या ब्राह्मी के नाम से लिपि का प्रवर्तन हो गया। ब्राह्मी लिपि बहुत प्राचीन लिपि है। वह आज भी चल रही है। ऋषभ ने जीवन की एक नई शैली का प्रवर्तन किया। उनसे पूर्व न कोई पढ़ने वाला था और न कोई पढ़ाने वाला । न कोई गुरु था, न कोई शिष्य । जो जन्मता, वह वैसे ही परम्परागत ढंग से जीता। न विकास था, न विकास की कामना थी। ऋषभ ने विकास के नए आयाम प्रस्तुत किए। भोज : विप्र राजा भोज नदी के तट पर खड़ा था। एक व्यक्ति नदी को चीरकर तट पर आ रहा था। वह फटेहाल था। राजा भोज ने पूछा-'कियन् मात्रं जलं विप्र !' नदी में जल कितना है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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