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ऋषभ का अवतरण
वे पहली बार श्मशान की ओर गए थे और उन्होंने पहली बार ही मुर्दा जलाए जाने का दृश्य देखा था। भद्रबाहु ने अपने साथियों से पूछा-यहां आग क्यों जलाई जा रही है?
साथियों ने उत्तर दिया--कुमार ! यहां चिता जलाई जा रही है। चिता क्या होती है? उसमें मुर्दा व्यक्ति को जलाया जाता है। मुर्दा कौन होता है। जो व्यक्ति निष्प्राण हो जाता है, वह मुर्दा होता है।
ओह ! वह सुन्दर नहीं था इसलिए जलाया जा रहा है। यदि वह सुन्दर होता तो मरता नहीं और वह नहीं मरता तो उसे जलाया नहीं जाता?
यह सुनकर साथी हंस पड़े । उन्होंने सोचा कितना भोला है राजकुमार ! इतना भी नहीं जानता-मरने के बाद कोई व्यक्ति सुन्दर नहीं रहता । सुन्दर से सुन्दर व्यक्ति को भी मरने के बाद घर में नहीं रखा जा सकता।
साथी बोले-कुमार ! यह बहुत सुन्दर था और बहुत संपन्न था। सुन्दर था तो मरा क्यों और मर गया तो जलाया क्यों जा रहा है?
मरने के बाद सुन्दरता नष्ट हो जाती है, शरीर विकृत हो जाता है, उसमें बदबू आने लग जाती है। उसके पास कोई भी आना नहीं चाहता। उसे तो जलाना ही अच्छा होता है।
क्या एक दिन मेरा भी यही हाल होगा? मैं इतना सुन्दर हूं। क्या मैं भी मर जाऊंगा? क्या मुझे भी जला दिया जाएगा?
कुमार के इन प्रश्नों का उसके मित्र क्या उत्तर देते? वे सब मौन हो गए।
भद्रबाहु ने मित्रों की आंखों में झांका । उनकी आंखों में यही उत्तर प्रतिबिम्बित था- भद्रबाहु ! तुम्हारी भी यही स्थिति होने वाली है । यह देख भद्रबाहु का अहंकार चूर-चूर हो गया। उनकी प्रज्ञा जाग गयी, उनके जीवन का सारा क्रम बदल गया। उनका खान-पान, रहन-सहन-सब कुछ बदल गया। उनकी चेतना परिवर्तित हो गई।
जब प्रज्ञा जागती है, जीवन की शैली अपने आप बदल जाती है। जब तक प्रज्ञा न जागे, अतीन्द्रिय चेतना न जागे, इन्द्रियातीत चेतना का उदय न हो, तब तक जीवन शैली को बदलना बड़ा कठिन होता है।
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