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________________ ऋषभ और महावीर या ब्रह्म । वह स्थायी रहता है । अगर हम कल्पना को निकट लाएं तो उत्पाद, व्यय, धौव्य तथा ईश्वर, लय या उत्पत्ति को एक दृष्टि से देख सकते हैं। पृथ्वी का अस्तित्व • सातवां प्रश्न है—यह पृथ्वी कब बनी है ? जब से जीव और अजीव का अस्तित्व है तब से पृथ्वी का अस्तित्व है। हमारा सौरमण्डल कितना बड़ा है ! हमारी नीहारिकाएं कितनी बड़ी हैं ! जो सौरमंडल दिखाई दे रहा है, जो नीहारिकाएं दिखाई दे रही हैं ऐसी असंख्य-असंख्य नीहारिकाएं और असंख्य सौरमंडल इस जगत् में विद्यमान हैं । विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकृति दे रहा है । एक ग्रह से दूसरे ग्रह के बीच की दूरी दो करोड़ अरब या खरब प्रकाश वर्ष है । एक प्रकाश वर्ष कितना बड़ा होता है ! इतना विराट है हमारा यह ब्रह्माण्ड, जगत् या विश्व । इसमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, पृथ्वी भी बदलती रहती है। आकाश अटल रहता है, वह कभी बनता या बिगड़ता नहीं है। वह अपने स्वभाव में बदलता है किन्तु बाहर में नहीं बदलता। प्राणी जगत् भी बदलता है __प्राणी जगत् भी बदलता रहता है । एक समय इस पृथ्वी पर जिन प्राणियों का साम्राज्य था, वह समाप्त हो गया। दो करोड़ वर्ष, चार करोड़ वर्ष पहले जिन प्राणियों का साम्राज्य था, आज उन प्राणियों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया। दूसरे प्राणी आ गए। प्राणियों की जातियां और प्रजातियां बदलती रहती हैं। प्राणियों का अस्तित्व भी बदलता रहता है। आकार भी एक समान नहीं रहता। आज आदमी का जो आकार है, क्या पहले भी वही आकार था? कहना कठिन है। वह बहुत बदला है, उसमें इतना परिवर्तन आया है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आगम साहित्य में ऐसे-ऐसे प्राणियों, मनुष्यों का उल्लेख है, जिनका मुंह घोड़े जैसा होता था और जिनके पूंछ भी होती थी। आज यह माना जाता है—बंदर के पूंछ होती है पर छप्पन अन्तर्वीप के मनुष्यों का जो वर्णन उपलब्ध होता है, वह बहुत विचित्र है । इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि मनुष्य सदा इसी रूप में था। उसके आकार-प्रकार बदले हैं, रूप बदले हैं । वर्ण, गंध, रस और स्पर्श भी बदलते रहे हैं। इस स्थिति में एक जैसा होने की बात कहना कठिन है। प्राणी जगत् भी बदला है और मनुष्य जगत् भी बदला है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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