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वर्षमान : प्रेक्षा के प्रयोग
शब्द का बहुत प्रयोग हुआ है। शरीर में जितने चक्र चैतन्य केन्द्र माने गए हैं, उन्हें तीन भागों में बांटा गया है। सबसे महत्त्वपूर्ण चैतन्य केन्द्र ऊर्ध्वलोक में है । आनन्द केन्द्र, विशुद्ध केन्द्र, ज्योति केन्द्र, शांति केन्द्र आदि ऊर्ध्वलोक में हैं । तैजस केन्द्र मध्यलोक में है। स्वास्थ्य केन्द्र और शक्ति केन्द्र अधोलोक में हैं। हमारे शरीर में
और भी बहुत से केन्द्र हैं। सारा शरीर चैतन्य केन्द्रों से भरा हुआ है। भगवान् महावीर ने इन केन्द्रों पर बहुत ध्यान किया। वे पुद्गल पर दृष्टि टिका देते, चाहे वह शरीर का हिस्सा हो या बाहरी पुद्गल।
ध्यान के लिए शरीर और बाहरी पुगल-दोनों का आलंबन लिया जा सकता है। बाहर का आलंबन या शरीर का आलंबन-इन दोनों में से किसी एक आलंबन पर महावीर लंबे समय तक अनिमेषप्रेक्षा का प्रयोग करते । सामने कोई मकान है, उस पर ध्यान टिका देना बाहरी आलंबन है। बाहर के पदार्थों को जानने के लिए ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक-इन तीनों पर ध्यान किया जाता है। भीतर को जानने के लिए, अपने पर विजय पाने के लिए शरीर के ऊर्ध्व, अध: और तिर्यग् भाग पर ध्यान किया जाता है। दोनों प्रकार की ध्यान की प्रक्रिया आचारांग-सूत्र से फलित होती है। आचारांग में ध्यान के महत्त्वपूर्ण सूत्र भरे हुए हैं । उनको पकड़ने वाला ध्यान के रहस्यों को पा लेता है। ध्यान सहज वृत्ति है
भगवान् महावीर की साधना ज्ञाता-द्रष्टा की साधना थी। केवल ज्ञाता-द्रष्टा होना ध्यान है । जब देखने-जानने के साथ संवेदन जुड़ जाता है, तब ध्यान अध्यान बन जाता है। ज्ञान और दर्शन अलग है, संवेदन अलग है। संवेदन का सम्बन्ध वेदनीय कर्म से है। प्रेक्षा का मतलब है ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम, दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम । इनका प्रयोग करना ही प्रेक्षा है। भगवान् महावीर ने ज्ञाता-द्रष्टा भाव का जो दर्शन दिया, वह ध्यान की बहुत सीधी और प्रभावी पद्धति है।
ध्यान एक अप्रयत्न है। कहा गया-उत्तमा सहजा-वृत्ति—सहज वृत्ति उत्तम होती है। ध्यान सहज वृत्ति है । जानने में कुछ करना नहीं पड़ता। क्रिया अन्तराय कर्म से संबंध रखने वाली वृत्ति है । जानने में कुछ करना नहीं होता, वह अक्रिया है। महावीर केवल जानने और देखने में निरत रहते थे। इसलिए वे अकषायी थे। अकषायी होना बहुत बड़ी बात है। लौकिक भाषा में अकषायी का अर्थ कुछ दूसरा होता है। अकषायी का अर्थ है कषाय-मुक्त होना । हम गहराई में जाएं तो यही ध्यान की परिभाषा है, यही अहिंसा की परिभाषा है । वीतराग होना, ध्यानी होना या अहिंसक
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