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________________ ११८ ऋषभ और महावीर होना- इनमें भिन्नता नहीं है । तात्पर्यार्थ में ये सारे एक बिन्दु पर सिमट जाते हैं । यदि एक व्यक्ति शुद्ध दृष्टि से अहिंसक रहता है तो वह ध्यान में है। यदि वह ध्यान में नहीं है तो वह अहिंसक नहीं हो सकता। यदि अहिंसक है तो वह ध्यान बिना रह नहीं सकता। बहुत सारे लोग ध्यान करने के लिए नहीं बैठते किन्तु उनकी आत्मा और चेतना निर्मल होती है, अपनी वृत्तियों पर उनका नियंत्रण होता है। मानना चाहिए–वे सहज ध्यान की मुद्रा में रहते हैं। आचार्य भिक्षु सहज ध्यानी थे हम आचार्य भिक्षु के जीवन को देखें । वे अंतिम समय में ध्यान-मुद्रा में दिवंगत हुए, ऐसा उल्लेख मिलता है किंतु वे कभी अलग से ध्यान करते थे, ऐसा उल्लेख नहीं मिलता। ऐसा लगता है-अहिंसा की बात उनकी आत्मा में इतनी बैठी हुई थी कि वे निरन्तर सहज ध्यान की स्थिति में रहते थे। इसीलिए प्राणिमात्र के प्रति उनके मन में गहरी संवेदना और करुणा थी। आचार्य भिक्षु का यह सिद्धांत-रांका नै मार धींगा ने पोखै—ध्यान का फलित है। सूक्ष्मजीवों के प्रति, प्राणिमात्र के प्रति करुणा का प्रवाह नहीं होता तो यह सिद्धांत कभी फलित नहीं होता। कबीर के पुत्र कमाल ने कहा था- 'जैसी प्राणधारा मुझमें प्रवाहित हो रही है वैसी ही प्राणधारा घास में प्रवाहित हो रही है इसलिए कमाल अब घास नहीं काट सकता।' जिस व्यक्ति को इतनी गहरी दृष्टि प्राप्त हो जाती है, प्राणिमात्र के प्रति करुणा और अहिंसा का भाव सध जाता है, उसे ध्यान में बैठने की जरूरत नहीं होती। वह निरंतर ध्यान की स्थिति में चला जाता है। प्रत्येक व्यक्ति सहज ही इस स्थिति को नहीं पा सकता। उसे अभ्यास करना होता है। करुणा और अहिंसा को जगाने के लिए प्रारम्भ में अभ्यास करना जरूरी है। हम अभ्यास करें, करुणा की वृत्ति को जगाएं। जिसमें करुणा या अहिंसा जाग गईं, उसका ध्यान सिद्ध हो गया। ध्यान का सबसे बड़ा सूत्र भगवान् महावीर ने प्रेक्षा की, केवल देखा और जाना । इसका अर्थ है-ज्ञान और दर्शन के साथ संवेदन जुड़ा हुआ नहीं था। शिष्य ने आचार्य से पूछा-गुरुदेव ! ध्यान क्या है ? आचार्य ने कहा-वत्स ! केवल सुनो । शिष्य ने पुन: प्रश्न किया-आपके कथन का अर्थ क्या है ? आचार्य बोले-तुम काम से काम लो, सुनो किन्तु उसके साथ और कुछ मत जोड़ो। तुम ध्यान की स्थिति में चले जाओगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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