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________________ ११६ ऋषभ और महावीर का प्रयोग करते । उनके प्रयोग का तीसरा बिन्दु था— नीचे लोक की प्रेक्षा । 1 वासना विजय का प्रयोग आकाश प्रेक्षा, तिर्यग् लोक प्रेक्षा और अधोलोक प्रेक्षा – ये तीन प्रयोग महावीर की साधना-पद्धति के मुख्य अंग थे ? प्रश्न होता है— महावीर इन प्रयोगों को क्यों करते थे ? कारण क्या था ? इसका एक कारण बतलाया जाता है- ऊपर के तत्त्वों को जानने के लिए ऊर्ध्व दिशा में ध्यान किया जाता है । तिर्यग् लोक के तत्त्वों को जानने के लिए तिर्यग् दिशा में ध्यान किया जाता है। अधोलोक - भूगर्भ के तत्त्वों को जानने के लिए नीचे लोक में ध्यान किया जाता है। यह एक कारण है। इसका दूसरा कारण है - प्राण और अपान का संतुलन । अपान पर विजय पाने के लिए, प्राण और अपान का संतुलन स्थापित करने के लिए ऊर्ध्व दिशा में ध्यान करना जरूरी है । यह वासना - विजय का महत्त्वपूर्ण प्रयोग है 1 वृत्ति नियंत्रण का सूत्र महावीर खड़े-खड़े ध्यान कर रहे थे। कुछ रमणियां आईं। वे महावीर के रूप और तेज को देखकर विमुग्ध हो गईं। एक ने कहा – तुम राजकुमार जैसे लगते हो। तुम कौन हो ? तुम्हारी पत्नी कौन है ? क्या वह क्षत्रियाणी है, ब्राह्मणी है या वैश्य है ? महावीर मौन रहे। दूसरी ने कहा- कैसा आदमी है ? हम पूछ रहे हैं और यह जबाब ही नहीं दे रहा है। तीसरी ने कहा— सुन्दर कुमार ! आंख खोलकर सामने तो देखो । एक रमणी बोली- लगता है कोई नपुंसक है। महावीर न बोले और न आंखें खोलीं। उनका प्रयत्न सफल नहीं हुआ । इस घटना का निष्कर्ष निकाला गया। महावीर की आंख ऊपर की ओर लगी हुई थी। उन्होंने ऊर्ध्व ध्यान के द्वारा अपान पर प्राण का नियंत्रण स्थापित कर लिया था इसलिए वे वासना से विरत बन गए। उन्होंने वासना को जीत लिया इसलिए कभी विचलित होने का प्रसंग ही नहीं बना। यह वृत्तियों को नियंत्रित करने का प्रयोग है। जब तक अपान पर प्राण का नियंत्रण नहीं होता तब तक वृत्ति नियन्त्रण का सूत्र हस्तगत नहीं होता । दो प्रकार के आलंबन हमारे शरीर के तीन भाग हैं— ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक । लोक का एक अर्थ है शरीर । प्राचीन जैन और बौद्ध साहित्य में शरीर के अर्थ में लोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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