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संकल्प की धुनी पर तपा गया तप
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अभय मौन था . महावीर कुछ नहीं बोले । उन्हें कोई भय ही नहीं था। लोगों के मन में भय था। महावीर अभय थे। भय बोल रहा था। अभय मौन था। अभय को बोलने की जरूरत ही नहीं होती। किसी व्यक्ति ने यह भी कहा होगा--यह खंभा है, इसे क्या कहें। हमारा जो कर्तव्य था, वह हमने कर दिया। यदि यह नहीं मानता है तो इसकी चिन्ता हम क्यों करें? सब लोग थककर चले गए।
रात गहराई । यक्ष अपने अधिष्ठान पर आया। वह बहुत क्रूर था। उसने देखा-मन्दिर में कोई खड़ा है। उसने सोचा-यह कौन आ गया? उसने विकराल हाथी का रूप बनाया। भयंकर अट्ठहास किया। सारा जंगल कांप उठा किंतु महावीर अप्रकम्प बने रहे । यक्ष ने सोचा-आदमी कमजोर तो नहीं है। उसने महावीर को इधर-उधर झकझोरा किन्तु विचलित करने में सफल नहीं हुआ। उसने भयंकर सर्प का रूप धारण किया। भीषण फुफकार की किन्तु महावीर अचल बने रहे। उसने महावीर को काटा, महावीर के मन में कोई विचलन पैदा नहीं हुई। उसने महावीर को विचलित करने के लिए अनेक भयंकर रूप निर्मित किए किन्तु वह अपने उद्देश्य में असफल ही रहा । वह हत्प्रभ और स्तब्ध रह गया। संकल्प युद्ध की संकल्पना
महावीर जीत गए, यक्ष हार गया । संकल्प जीत गया, क्रूरता हार गई । संकल्प की जो ताकत है, हम उसे जानते नहीं है। हम संकल्प शक्ति की महिमा गाते हैं, व्याख्या करत हैं किन्तु उसका प्रयोग करना नहीं जानते। आजकल सैनिक-शक्ति से समृद्ध देश भी संकल्प-शक्ति के मार्ग पर आ गए हैं। रूस और अमेरिका के परामनोवैज्ञानिक परामानसिक शस्त्रों के निर्माण में लगे हुए हैं। अरबों डालर इस कार्य पर खर्च किए जा रहे हैं। सेनाओं के युद्ध में जीतने वाले का बहुत नुकसान होता है। उसमें लाखों आदमी मारे जाते हैं, भयंकर नरसंहार होता है। युद्ध अनेक समस्याओं को जन्म देता है । आज एक नई पद्धति विकसित हो रही है—संकल्प का युद्ध लड़ा जाए। एक ओर शत्रु का आक्रमण हो रहा है, दूसरी ओर प्रयोगशाला में वैज्ञानिक बैठे हैं, वे अपनी संकल्प शक्ति के सहारे संकल्प की तरंगों को छोड़ रहे हैं. वे संकल्प की तरंगें सामने वाली सेना की तरफ जा रही है और उन तरंगों के कारण सारे सैनिक मूर्च्छित होकर गिर रहे हैं। सेना बिल्कुल नाकाम बन रही है। वैज्ञानिक इस प्रयोग की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। रामायण में निद्रा-बाण का
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