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________________ ११० ऋषभ और महावीर प्रयोग मिलता है। एक ऐसा बाण छोड़ा गया, जिससे शत्रु सेना नींद की मुद्रा में सो गई, निकम्मी हो गई । यह संकल्प युद्ध की तैयारी, शत्रु सेना को निष्क्रिय बनाने का उपक्रम आज विकासोन्मुख है। अपने राष्ट्र की हानि न हो और सामने वाले राष्ट्र की शक्ति निष्क्रिय बन जाए, इस तथ्य पर संकल्प युद्ध की संकल्पना आधारित है। संकल्प कल्पवृक्ष है ____ आज संकल्प की शक्ति के सहारे जो काम विदेशों में हो रहा है उसे भारत के लोगों ने हजारों-हजारों वर्ष पहले पहचान लिया था। संकल्प के सहारे बहुत बड़ा काम किया जा सकता है। भारतीय साहित्य में एक बहुप्रयुक्त शब्द है-कल्पवृक्ष । पता नहीं आज कहां है कल्पवृक्ष । कम से कम हिन्दुस्तान में तो कहीं दिखाई नहीं दिया। यदि कोई कल्पवृक्ष होता, उसके नीचे बैठने से सारी कामनाएं पूरी हो जाती तो सबसे पहले उसके नीचे मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बैठते । उन्हें अपनी गद्दी छिन जाने का जो खतरा बना रहता है, यह खतरा कभी नहीं रहता। आज का कल्पवृक्ष कलियुग का कल्पवृक्ष है। अगर सतयुग का कल्पवृक्ष होता तो किसी शासक की कुर्सी छिन जाने का खतरा कभी नहीं होता। कहा जाता है-कल्पवृक्ष स्वर्ग में है, वह मनुष्य लोक में नहीं है । प्रश्न होता है—क्या संकल्प कल्पवृक्ष नहीं है ? भारतीय संस्कृति में तीन शब्द बहत विश्रुत हैं-कल्पवृक्ष, चिंतामणि रत्न और कामधेन् । ये तीनों प्रत्येक व्यक्ति के भीतर हैं । जिसमें चिन्तन की शक्ति है, उसके पास चिन्तामणि रल है। जिसमें कामना की शक्ति है, उसके पास कामधेनु है । जिसमें कल्पना की शक्ति है उसके पास कल्पवृक्ष है । महावीर का कल्पवृक्ष शक्तिशाली बन गया। वह उनकी सारी कल्पनाएं पूरी कर देता। संकल्प का परिणाम आयार्य हेमचन्द्र ने महावीर की स्तुति में लिखा पन्नगे च सुरेन्द्रे च, कौशिके पादसंस्पृशि। निर्विशेषमनस्काय, श्रीवीरस्वामिने नमः ।। इन्द्र चरणों में नमस्कार कर रहा था और चण्डकौशिक नाग पैरों को डस रहा था। उन दोनों के प्रति, जिसका मन समान था, उस महावीर को मैं नमस्कार करता हूं। समता का विकास संकल्प के बिना नहीं हो सकता। समता का विकास तब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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