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________________ १०८ ऋषभ और महावीर दीपक बुझ न जाए। जैसे ही दीपक टिमटिमाने लगा, अन्तिम सांसें गिनने लगा वैसे ही दासी ने उसमें तेल भर दिया, पुन: प्राण का संचार कर दिया। स्नेह मिला, बुझता दीपंक पुन: प्रदीप्त हो उठा। राजकुमार का कायोत्सर्ग लम्बा हो गया। उसने सोचाअच्छा है, आज बहत लम्बा कायोत्सर्ग हो जाएगा। दो घंटा बीता। दीपक टिमटिमाने लगा । दासी ने उसमें पुन: तेल भर दिया। राजकुमार सुकुमार था किन्तु उसका संकल्प बल सुकोमल नहीं था। रात भर न दासी सोई, न राजा सोए और न दीपक बुझा। कभी-कभी ऐसी घटनाएं घटती हैं, व्यक्ति का संकल्प मजबूत बन जाता है, एक साथ सारी शक्तियां जाग जाती हैं। उस स्थिति से असंकल्पकाम व्यक्ति भी दृढ़संकल्पी बन जाता है। पुजारी का भय भगवान् महावीर का संकल्प था—मैं आज पूरी रात इस यक्ष मन्दिर में खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करूंगा । सांझ का समय था । पुजारी पूजा करने आया। उसने देखा-कोई संन्यासी ध्यान किए खड़ा है। उसने मन्दिर में पूजा की। वह पूजा कर जाने लगा। उसने संन्यासी से कहा-महाराज ! सूरज अस्त हो चला है, अंधेरा गहरा रहा है। आपको पता है-यह यक्ष का मन्दिर है। यहां रात को कोई रह नहीं सकता। अगर कोई भूला-भटका रह जाता है तो निकल नहीं सकता। वह अपने जीवन से हाथ धो लेता है । वह आता है स्वयं और उसे निकाला जाता है दूसरों के द्वारा, इसलिए आप कृपा कर ध्यान पूरा करें, गांव में चलें ! मैं आपके लिए अत्यन्त सुन्दर स्थान की व्यवस्था कर दूंगा। महावीर ने सुना-अनसुना कर दिया। पुजारी ने सोचा-बड़ी मुसीबत है। यह उत्तर ही नहीं दे रहा है। खतरे की बात पर भी यह कोई ध्यान नहीं दे रहा है। लगता है-यह कोई हठी आदमी है। वह गांव में गया। गांव के मुखिया लोगों को इकट्ठा किया। पुजारी ने उनसे कहा-यक्ष मन्दिर में एक संन्यासी ध्यान की मुद्रा में खड़ा है। बड़ा भव्य लगता है। अगर वह मर जाएगा तो हमारे गांव की बड़ी बदनामी हो जाएगी। हम सब चलें और उसको मनाकर ले आएं। पुजारी गांव के मुखिया लोगों के साथ पुन: मन्दिर में आया। मुखिया लोगों ने कहा-संन्यासीजी ! यहां रहना खतरे से खाली नहीं है। आपको नहीं, हमें खतरा है। अगर आपको कुछ हो गया तो हमारा क्या होगा? आप हमारी प्रार्थना स्वीकार करें, गांव में चलें। आपकी अच्छी व्यवस्था हो जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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