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संकल्प की धुनी पर तपा गया तप
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संकल्प की प्रतिमा __ महावीर का संकल्प-बल निरन्तर जागृत रहता था। ऐसा लगता है—कोई भी घटना सामने आती, महावीर का संकल्प एक नया रूप ले लेता। महावीर संकल्प की प्रतिमा बने हुए थे। उनका संकल्प भी इतना मजबूत होता, जिसे दुनिया की कोई शक्ति हिला नहीं सकती, तोड़ नहीं सकती। साढ़े बारह वर्ष के साधना-काल में उनके संकल्प को विचलित करने के लिए सैंकड़ों-सैंकड़ों प्रसंग प्रस्तुत हुए किन्तु महावीर कभी भी विचलित नहीं हुए। ऐसा एक भी प्रसंग नहीं बना—जब महावीर हार जाए और सामने वाला व्यक्ति जीत जाए । उनका संकल्प-बल सदा अटूट बना रहा। जिस व्यक्ति का संकल्प मजबूत होता है, वह कभी पराजित नहीं होता। पराजित वही होता है, जिसका संकल्प श्लथ होता है। जो सुबह एक संकल्प करता है और शाम को उसे भूल जाता है, बदल देता है, वह किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकता। संकल्प रात्रिक प्रतिमा का
हमारे विकास का सबसे शक्तिशाली साधन है-संकल्प। एक बार मन में संकल्प जागे, वह लौह की लकीर बन जाए, लक्ष्मण रेखा बन जाए, उसमें परिवर्तन की संभावना ही न आए तो सफलता का स्रोत फूट पड़ता है। लचीला होना बहुत अच्छा है। विचारों में लचीलापन और दृष्टिकोण की सापेक्षता बहुत अच्छी बात है किन्तु जहां चरित्र का प्रश्न है वहां लचीलापन बहुत खतरनाक होता है। संकल्प की दृढ़ता ही व्यक्ति को आगे बढ़ा सकती है। जिसका संकल्प मजबूत नहीं होता, उसके लिए बहुत खतरे पैदा हो जाते हैं। साधना के क्षेत्र में महावीर ऐसे अलौकिक पुरुष हुए हैं, जिनके संकल्प का कोई शानी नहीं है। महावीर एक बार शूलपाणी यक्ष के मन्दिर में खड़े हो गए। उन्होंने एक रात्रिक प्रतिमा का संकल्प स्वीकार कर लिया। कायोत्सर्ग के साथ संकल्प करना एक प्रतिमा है। घटना सागरचन्द्र की
राजकुमार सागरचन्द्र की घटना है। उन्होंने संकल्प किया--जब तक दीपक जलेगा, कायोत्सर्ग में रहूंगा। वे इस संकल्प के साथ कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े हो गए। राजकुमार ने सोचा था-दीपक कितनी देर जलेगा। एक घंटे के बाद जब तेल खत्म हो जाएगा, तो दीपक बुझ जाएगा। घंटे भर बाद दीपक बुझने लगा। दासी चौकन्नी खड़ी थी। उसने सोचा-महाराज ध्यान की मुद्रा में खड़े हैं, कहीं
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