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________________ कर्मवाद ८३ बाहरी कारण नहीं मिला, क्रोध-वेदनीय पुदगलों के तीव्र विपाक से अपने-आप क्रोध आ गया-यह उनका नितुक उदय है। इसी प्रकार हास्य, भय, वेद (विकार) और कषाय के पुद्गलों का भी दोनों प्रकार का उदय होता है। अपने आप उदय में आने वाले कर्म के हेतु ____ गति-हेतुक उदय-नरक गति में असात (असुख) का उदय तीव्र होता है । यह गति-हेतुक विपाक-उदय है। स्थिति-हेतुक उदय-मोह कर्म की सर्वोत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व-मोह का तीव्र उदय होता है। यह स्थिति-हेतुक विपाक उदय है। भव-हेतुक उदय-दर्शनावरण (जिसके उदय से नींद आती है) सबके होता है, फिर भी नींद मनुष्य और तिर्यंच दोनों को आती है, देव और नारक को नहीं आती। यह भव (जन्म) हेतुक-विपाकउदय है। गति-स्थिति और भव के निमित्त से कई कर्मों का अपने-आप विपाक-उदय हो आता है। दूसरों द्वारा उदय में आने वाले कर्म-हेतु पुद्गल-हेतु उदय--किसी ने पत्थर फेंका, चोट लगी, असात का उदय हो आया-यह दूसरों के द्वारा किया हुआ असात-वेदनीय का पदगल-हेतुक विपाक-उदय है। किसी ने गाली दी, क्रोध आ गया-यह क्रोध-वेदनीय-पुद्गलों का सहेतुक विपाक-उदय है। पुद्गल-परिणाम के द्वारा होने वाला उदय-भोजन किया, वह पचा नहीं, अजीर्ण हो गया। उससे रोग पैदा हुआ । यह असातवेदनीय का विपाक उदय है। मदिरा पी, उन्माद छा गया-ज्ञानावरण का विपाक-उदय हुआ। यह पुद्गल-परिणमन हेतुक विपाक-उदय है। इस प्रकार अनेक हेतुओं से कर्मों का विपाक-उदय होता है। अगर ये हेतु नहीं मिलते तो उन कर्मों का विपाक-रूप उदय नहीं होता । उदय का एक दूसरा प्रकार और है। वह है प्रदेश-उदय। इसमें कर्म-फल का स्पष्ट अनुभव नहीं होता। यह कर्म-वेदन की अस्पष्टानुभूति वाली दशा है। जो कर्म बन्ध होता है, वह अवश्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003092
Book TitleJain Darshan me Tattva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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