SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तुत पुस्तक के उदार अर्थ सहयोगी स्व० सौ० ताराबाई सुवालाल जी छल्लानी एक परिचय : भारत के तत्व चिन्तक महामनीषियों ने नारी की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा कि जहाँ पर नारी की पूजा होती है, वहाँ पर देवताओं का निवास है। चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियम ने नारी को संसार का सार कहा है । नारी नारायणी है, समाज रूपी शरीर की नारी नाड़ी है, नारी की स्वस्थता पर ही समाज की स्वस्थता निर्भर है। मानव जाति पर नारी ने अगणित उपकार किये हैं, वह माता के रूप में सदा वन्दनीय रही, भगिनी के रूप में स्नेह की सरस सरिता बहाती रही। पत्नी के रूप में प्रेरणा की पावन स्रोतस्विनी बनकर परिवार में, स्नेह की सरसब्ज भावना पनपाती रही। पुत्री के रूप में वह दोनों कुलों को चार चाँद लगाती रही। माँ सती के रूप में वह अध्यात्मिकता की ज्योति शिखा रही। धन्य है नारी का जीवन, जो स्नेह, सद्भावना और समर्पण का उदात्त आदर्श सदा प्रस्तुत करती रही है। . .. श्रीमती अखण्ड सौभाग्यवती स्वर्गीय ताराबाई छल्लानी एक ऐसी ही प्रेरणा की मूर्ति महिला थी, जिसने अपने मधुर व्यवहार से जन-जन के मन में स्नेह की ज्योति प्रज्ज्वलित की। आपके पूज्य पिताश्री का नाम मूलचन्द जी नाहर था। आपकी जन्म स्थली मध्यप्रदेश के गाडरवाड़ा थी, जो नरसिंहपुर जिले में स्थित है । आपका जन्म दि० २६-११-४२ गुरुवार को हुआ तथा आपका पाणिग्रहण श्रीमान सुवालाल जी साहब छल्लाणी औरंगाबाद के साथ सम्पन्न हुआ। पति-पत्नी की यह अद्भुत जोड़ी राम और सीता के ज्वलन्त आदर्श को उपस्थित करती थी। श्रीमान् सुवालाल जी छल्लाणी बहुत ही उदारमना धर्मनिष्ठ सुश्रावक है जिन्होंने अपने प्रबल पुरुषार्थ से सामाजिक, धार्मिक क्षेत्र में एक कीर्तिमान स्थापित किया है। कर्नाटक केशरी पूज्य श्री गणेशीलाल जी महाराज की पावन पुण्य स्मृति में औरंगाबाद में तपस्वी प्रवर श्री मिश्रीलाल जी महाराज की पावन प्रेरणा से श्री गुरु गणेशनगर की संस्थापना हुई, उस संस्था के आप कर्मठ कार्यकर्ता हैं। उसके विकास के लिए आपने समय-समय पर अनुदान देकर एक आदर्श उपस्थित किया है । आप उस संस्था के प्राणवान सक्रिय अध्यक्ष है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy