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२१८ तमसो मा ज्योतिर्गमय करती । अतः ऐसी अविवेकवती नौकरानी से काम कराने में ज्यादा पापबन्ध होगा। यदि कोई बहन विवेक के साथ काम करेगी तो कदम-कदम पर छानबीन करेगी; आटा, पानी, लकड़ी आदि देखभाल कर करेगी । उसके अन्तर् में दया एवं करुणा की लहर उबुद्ध होगी तो वह यह भी सोचेगी कि यह भोजन मेरे पारिवारिक जनों के स्वास्थ्य के अनुकूल है या नहीं? किन्तु उसने आलस्यवश अविवेकी नौकरानी से रसोई कराने में शान समझी। वह चौके को हिसामय बना देगी। इस तरह उससे कराने में अधिक पाप हुआ।
जो बात गृहस्थ के लिए है, वही बात साधुओं के लिए है । एक शिष्य है, एक गुरुजी के पास । परन्तु वह गोचरी सम्बन्धी नियमोपनियमों से अनभिज्ञ है । नौसिखिया है, केवल माल इकट्ठा कर लेना ही गोचरी का अर्थ समझता है । गुरुजी विवेकी हैं, गोचरी सम्बन्धी नियमों के जानकार हैं । परन्तु वे अपने बड़प्पन की शान दिखाने के लिए स्वयं गोचरी हेतु न जाकर अविवेकी शिष्य को भेज देते हैं। उसे पता नहीं कि कहाँ, कितनी चीज लनी चाहिए या गृहस्थ के परिवार के लिए पीछे कुछ बचता है या नहीं ? इस प्रकार अंटसंट आहार भर कर ले आता है, तो वह गोचरी के साथ दोषों का भंडार भर लाएगा । ऐसी स्थिति में गुरुजी स्वयं जाते तो इतनी हिंसा नहीं होती । यहाँ करने की अपेक्षा कराने में अधिक हिंसा हुई।
एक डॉक्टर है, वह ऑपरेशन करने में एक्सपर्ट है । परन्तु वह अपने कंपाउंडर से कहता है कि मुझे ऑपरेशन करते हुए घृणा आती है, इस कारण मैं ऑपरेशन नहीं कर सकता, तुम कर दो। यों कह कर वह कंपाउंडर को ऑपरेशन करने के लिए तैयार कर लेता है, किन्तु कंपाउंडर ऑपरेशन में बहुत अनभिज्ञ है, अनाड़ो भी है, होशियार नहीं है। अतः डॉक्टर को, स्वयं अपने हाथ से ऑपरेशन न करके कंपाउंडर से कराने में अधिक हिंसा व पापबन्ध हुआ । इसी प्रकार एक दूसरा डॉक्टर है, जो स्वयं ऑपरेशन करने में अनभ्यस्त है, या इतना एक्सपर्ट नहीं है, वह अगर अपने से विशेषज्ञ व निष्णात डॉक्टर ने ऑपरेशन कराता है तो यहाँ करने की अपेक्षा कराने में अल्प पाप ही हुआ। दोनों डॉक्टरों के उदाहरण आपके सामने हैं । दोनों डॉक्टरों ने स्वयं ऑपरेशन न करके दूसरों से ऑपरेशन कराया है। परन्तु पहले डॉक्टर को अधिक पापबन्ध होगा, जबकि दूसरे डॉक्टर को अल्प पाप लगेगा। यह अन्तर विवेक और अविवेक का है । एव
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