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२१२ तमसो मा ज्योतिर्गमय हिंसा को पृष्ठभूमि : कषाय
__ अब देखना यह है कि हिंसा का जो संकल्प या प्रयत्न किया जाता है, उसकी पृष्ठभूमि क्या है ? वह किसकी प्रेरणा से किया जाता है ? जैन दृष्टि से हिंसा का संकल्प, सामग्री संग्रह या हिंसा का सक्रिय प्रयत्न-ये तीनों अन्तर्ह दय की दृष्ट कल्पनाओं, दुष्परिणतियों या दुर्भावनाओं की प्रेरणा से होते हैं।
वे दुर्भावनाएं चार प्रकार की हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ जब कभी हिंसा की किसी स्तर की दुष्प्रवृत्ति की जाती है तो उसके पीछे या तो क्रोध होता है, या अभिमान, अथवा माया या लोभ होता है। राग, द्वेष, ईर्ष्या आदि का भी अन्तर्भाव इन चारों में हो जाता है। इन्हीं चारों को चार कषाय कहते हैं । इन्हीं चारों कषायों के कारण संरम्भरूप, समारम्भरूप या आरम्भरूप हिंसा होती है।
जैसे बहनें रोटी बनाने के लिए पहले मन में विचार करती हैं, तदनन्तर रोटी बनाने की सामग्री जुटाती हैं और उसके बाद रोटी बनाने की क्रिया शुरू कर देती हैं। इसी प्रकार हिंसा के ये तीन क्रम हैं । इन तीनों के साथ चारों कषाय मिल जाते हैं, तो तीन को चार से गुणा करने पर १२ भेद हिंसा के बन जाते हैं। कषायों का रंग जितना ही अधिक पक्का और गहरा होगा, उतनी ही अधिक हिंसा भड़केगी, और इनका रंग जितना कच्चा या अल्प होगा, उतनी ही हिंसा अल्प होगी। हिंसा की पृष्ठभूमि कषाय है, यह याद रखना चाहिए । हिंसा के तीन योग और तीन करण
हिंसा के स्रोत तीन योग हैं-मन, वचन और काया; यह पहले कहा जा चुका है । ये ही हिंसा के मुख्यतः तीन औजार या साधन हैं । मनुष्य के पास ये ही तीन ताकतें हैं, और हैं ये प्रबल रूप में, इन्हीं पर जब स्पन्दन या हलचल होती है, तभी हिंसा होती है । . हाँ, तो हिंसा के पूर्वोक्त १२ भेदों के साथ मन-वचन-काया ये तीन योगों का गुणन करने पर ३६ भेद हो गए ।
इन तीन योगों के द्वारा हिंसा करने के तीन द्वार हैं या तरीके हैं, जिन्हें शास्त्रीय परिभाषा में करण कहते हैं। करण तीन प्रकार के हैंकृत, कारित और अनुमोदन । अर्थात् मनुष्य हिंसा केवल स्वयं ही करता
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