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________________ हिंसा-अहिंसा की परख १८१ कहने, अपमानित करने आदि के रूप में हिंसा के संकल्प उठते हैं, तब से ही समझ लो हिंसा हो गई। भाव हिंसा का विश्लेषण जहाँ किसी को मारने का संकल्प आया, रागद्वष का भाव आया, वहाँ दूसरे की हिंसा हो या न हो; निश्चय में वह हिंसा ही है । इसे ही भाव हिंसा कहते हैं । वस्तुतः मनोविकारों के भड़कते का नाम ही भाव हिंसा है। मन के किसी कोने में किसी व्यक्ति के प्रति विद्वोष की आग पैदा हई तो भाव हिंसा हो गईं। द्वष की तरह मनुष्य के अन्तर्जीवन में क्रोध, अहंकार, छल, कपट, लोभ, राग, मोह, घृणा, ईर्ष्या, द्रोह आदि मनोविकारों का उत्पन्न होना भी हिसा है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी की आत्मा में किसी के प्रति द्वष, ईर्ष्या, द्रोह जगा तो भाव हिंसा हो गई। इसी प्रकार मन में हिंसा के कारणभूत असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य, बेईमानी, छल, धोखा, हत्या, डकैती, लूट, अपहरण, व्यभिचार आदि के रूप में दुर्भाव आए तो वे आत्म परिणामों की हिंसा के कारणभूत होने से सब के सब भाव हिंसा के अन्तर्गत आ जाते हैं । आचार्य अमृतचन्द्र ने इसी बात का समर्थन किया है "आत्मपरिणाम हिंसन हेतुत्वात् सर्वमेव हिंसतत् । अनृतवचनादि केवलमुदाहृतं शिष्यबोधाय ॥"" आत्मा के शुद्ध परिणामों की हिंसा के कारण होने से असत्य, चोरी, व्यभिचार आदि सभी भाव हिंसा के अन्तर्गत आ जाते हैं । असत्य वचनादि केवल शिष्य को पृथक-पृथक् बोध कराने के लिये हैं। द्रव्य हिंसा तो सीधा दूसरे प्राणी के जीवन का अहित करती है । परन्तु भाव हिंसा दूसरे के जीवन का अहित करे या न करे सर्वप्रथम हिंसा का संकल्प करने वाले स्वात्मा का अहित करती है। इसलिए भाव हिंसा पर की अपेक्षा अपने लिए अधिक अहितकर तथा आत्मपतन का मूल कारण बनती है । प्रायः यह देखा जाता है कि मनोविकार मनुष्य की आत्मचेतना को आवृत कर देते हैं । आचार्य अमृतचन्द्र इसी अनुभवयुक्त वचन का समर्थन करते हैं यस्मात् सकषायः सन् हन्त्यात्मा प्रथममात्मनात्मानम् । पश्चात् जायेत न वा हिंसा, प्राण्यन्तराणां तु ॥ २ १ पुरुषार्थ सिद्धयुपाय-४३, २ पुरुषार्थ सिद्धयुपाय-४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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