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महामन्त्र : एक अनुचिन्तन ३ विज्ञान विधि पर ही अवलम्बित है । अविधिपूर्वक किया गया कार्य निष्फल होता है । यही स्थिति मंत्र-जप की भी है।
_ नमोक्कार महामंत्र में पाँच पद हैं । ३५ अक्षर हैं। इनमें ११ अक्षर लघु हैं, २४ गुरु हैं, १५ दीर्घ हैं और २० ह्रस्व हैं, ३५ स्वर हैं और ३४ व्यंजन हैं। यह एक अद्वितीय बीज संयोजना है। 'नमो अरिहंताणं' में सात अक्षर हैं, 'नमो सिद्धाणं' में पांच अक्षर हैं, 'नमो आयरियाणं' में सात अक्षर हैं, 'नमो उवज्झायाणं' में सात अक्षर हैं और 'नमो लोए सव्व साहूणं' में नौ अक्षर हैं-इस प्रकार इस महामन्त्र में कुल ३५ अक्षर हैं । स्वर और व्यंजन का विश्लेषण करने पर 'नमो अरिहंताणं' में ७ स्वर और ६ व्यंजन हैं, 'नमो सिद्धाणं' में ५ स्वर और ६ व्यंजन हैं, 'नमो आयरियाणं' में ७ स्वर और ६ व्यंजन हैं, 'नमो उवज्झायाणं' में ७ स्वर और ७ ही व्यंजन हैं तथा 'नमो लोए सव्व साहणं' में ६ स्वर तथा ६ व्यंजन हैं-इस प्रकार नमोक्कार महामन्त्र में ३५ स्वर और ३४ व्यंजन हैं। यह महामन्त्र जैन आराधना और साधना का केन्द्र है, इसकी शक्ति अपरिमेय है। इस महामन्त्र के वर्गों के संयोजन पर चिन्तन करें तो यह बड़ा अद्भुत और पूर्ण वैज्ञानिक है। इसके बोजाक्षरों को आधुनिक शब्द विज्ञान की कसौटी पर कसने पर यह पाते हैं कि इसमें विलक्षण ऊर्जा है और शक्ति का भण्डार छिपा हुआ है। प्रत्येक अक्षर का विशिष्ट अर्थ है, प्रयोजन है और ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता है।
जैन धर्म में अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पाँच महान् आत्मा माने गए हैं, जिन्होंने आध्यात्मिक गुणों का विकास किया । आध्यात्मिक उत्कर्ष में न वेष बाधक है और न लिंग ही । स्त्री हो या पुरुष हों, सभी अपना आध्यात्मिक उत्कर्ष कर सकते हैं। नमोक्कार महामन्त्र में अरिहन्तों को नमस्कार किया गया है, किन्तु तीर्थंकरों को नहीं। तीर्थंकर भी अरिहन्त हैं तथापि सभी अरिहन्त तीथंकर नहीं होते । अरिहन्तों के नमस्कार में तीर्थंकर स्वयं आ जाते हैं। पर तीर्थकर को नमस्कार करने में सभी अरिहन्त नहीं आते । यहां पर तीर्थकरत्व मुख्य नहीं है, मुख्य हैअहंतभाव।
जैन धर्म की दृष्टि से तीर्थकरत्व औदयिक प्रकृति है। वह एक कर्म के उदय का फल है किन्तु अरिहन्तदशा क्षायिक भाव है। वह कर्म का फल नहीं अपितु कर्मों की निर्जरा का फल है । तीर्थंकरों को भी जो नमस्कार किया जाता है, उसमें भी अर्हत्भाव ही मुख्य रहा है । इस प्रकार नमोक्कार महामन्त्र में व्यक्ति विशेष को नहीं, किन्तु गुणों को नमस्कार किया गया
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