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'अपेक्षा तो है ही । ऐसा नहीं होता कि अभ्यास के प्रारंभ में ही संज्ञा का घना वलय, चक्रव्यूह टूट जाये। लंबा अभ्यास अपेक्षित है और वह धैर्य के बिना असंभव है ।
संज्ञा - मुक्त होने का दूसरा उपाय है- आत्म सम्मोहन । दूसरे के द्वारा सम्मोहित होने की बात नहीं, किन्तु स्वयं का सम्मोहन । शास्त्रीय भाषा में इसे 'भावना' कह सकते हैं । यदि हम संज्ञा से मुक्त होना चाहते हैं तो हमें संज्ञा-मुक्त होने की भावना को इतनी तन्मयता के साथ करना होगा कि उस विषय में हम स्वयं सम्मोहित जैसे हो जाएं, तदात्म हो जाएं। इतना तादात्म्य स्थापित हो कि हम भावितात्मा बन जाएं। उस तादात्म्य या सम्मोहित अवस्था में वह जो भी सोचता है, वह हो जाता है, जैसा सोचता है वैसा हो जाता है। सम्मोहन और भावना की यह प्रक्रिया लाभप्रद है तो हानिप्रद भी है ।
सम्मोहन में दो बातें होती हैं। पहली बात है -- तादात्म्य की । सम्मोहन सफल तब होगा जब तादात्म्य होगा । मनोविज्ञान की भाषा में तादात्म्य का अर्थ है - स्थूल या चेतन मन को भुलाकर अवचेतन मन को जगा देना । अवचेतन मन को जगाये बिना तादात्म्य की बात नहीं हो सकती। तब तक हम अपने ध्येय के साथ एकरस नहीं हो सकते जब तक अवचेतन मन जागृत नहीं हो जाता । अवचेतन मन को जगाने का सबसे अच्छा अभ्यास है— कंठ से श्वास लेना और चिद् आकाश को देखना, उस पर ध्यान केन्द्रित करना ।
सबसे पहले हम कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठें। कंठ से श्वास लें। पांच-सात मिनिट तक श्वास लेने की क्रिया चलती रहे । स्थूल मन सो जायेगा, अवचेतन मन जाग जायेगा। जब वह जाग जाये तब उसे सुझाव दें, निर्देशन दें। यहां हमें सतर्कता रखने की आवश्यकता है। अवचेतन मन के जाग जाने पर यदि गलत सुझाव चला गया तो वह भी क्रियान्वित हो जायेगा । खतरा पैदा हो जायेगा । लाभ के बदले हानि हो जायेगी । इसलिए पूरी सावधानी बरती जाये कि उस समय मन में गलत सुझाव या गलत विकल्प न आये। एक धारा जो बह रही है, उस धारा के प्रतिकूल, उसका प्रतिरोधी कोई भी विकल्प मन में आ गया तो वह क्रियान्वित होगा और बहुत बड़ा खतरा पैदा कर देगा ।
एक पौराणिक कथा है। एक बार देवता और दानवों में युद्ध हुआ । दानवों ने विजय के लिए अनुष्ठान किया। उन्होंने मंत्र साधना प्रारंभ की। मंत्र था -- 'इन्द्र शत्रुर्वर्धस्व' | मंत्र की साधना चली । युद्ध हुआ और दानवों की हार हो गयी । देवता जीत गये। दानवों को आश्चर्य हुआ कि मंत्र-साधना के बावजूद हार कैसे हुई। विमर्श करने पर यह तथ्य सामने आया कि 'इन्द्र' शब्द के आगे विसर्ग का उच्चारण होना चाहिए था । वह नहीं हुआ। मंत्र या संकल्प का एक हिस्सा ही है सुझाव | सुझाव गलत हो गया ।
६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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