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________________ हमें मूर्छा को तोड़ना है। जब तक मूर्छा के घने बादलों को हम बिखेर नहीं देते तब तक चेतना के आकाश में तेजस्वी सूर्य का उदय नहीं हो सकता। वह सूर्य तभी प्रकाश दे सकता है जब ये बादल उस पर छाये हुए न रहें। प्रश्न है कि हम उन बादलों को कैसे हटायें ? मूर्छा को कैसे तोड़ें? संज्ञाओं को समाप्त कैसे करें? उसकी प्रक्रिया क्या है ? .. संज्ञा को तोड़ने का, मूर्छा के बादलों को विरल करने का एकमात्र उपाय है-शुद्ध चेतना का अनुभव करना, आत्मा के द्वारा आत्मा को देखना। यह उपाय समची साधना को अपने में समेटे हुए है। इससे यह रहस्य उद्घाटित होता है कि हम क्या करना चाहते हैं ? आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें। इसका अर्थ हैचेतना के द्वारा शुद्ध चेतना को देखें। मन के द्वारा अन्तर्मन को देखें । बहिर्चेतना के द्वारा अन्तश्चेतना को देखें। प्रश्न होता है कि ऐसे देखने का परिणाम क्या होगा?/जो आत्मा के द्वारा आत्मा को देखता है वह अनासक्त हो जाता है। वह आसक्ति के व्यूह को तोड़ देता है। अनासक्ति का उपाय संज्ञा-मुक्त होने का उपाय है, मूर्छाओं को तोड़ने का उपाय है। शुद्ध चेतना का अनुभव कर प्राणी अनासक्त हो जाता है। उसकी सारी मूर्छाएं टूट जाती हैं। शुद्ध चेतना की संप्रेक्षा का अर्थ है-शुद्ध उपयोग में रहना। शुद्ध उपयोग का अर्थ है-सतत जागरण। जागरण और मर्छा दो हैं। मूर्छा होगी तो जागरण नहीं होगा और जागरण होगा तो मूर्छा नहीं होगी। जागरण का अर्थ है-आत्मा की संप्रेक्षा, शुद्ध चेतना का अनुभव । इसे हम सरल शब्दों में समझें। राग-द्वेष-शून्य क्षणों का अनुभव जागरण है। जागरण ऐसे क्षण का अनुभव है जिसमें न प्रियता का भाव है, न अप्रियता का भाव है. केवल जो है उसका साक्षात्कार है, और कुछ भी नहीं है।) हम श्वास का या अन्तर्दर्शन का आलंबन लेते हैं । श्वास के साथ हमारा कोई लगाव नहीं है। उसके साथ न राग है, न द्वेष है । केवल एक आलंबन के रूप में उसे हमने स्वीकार किया है। श्वास का आलंबन शुद्ध चेतना के अनुभव का एक उपाय है। जहां केवल देखना है, जहां केवल जानना है, जहां केवल साक्षात्कार है, उसके साथ हमारा कोई लगाव नहीं है, राग-द्वेष नहीं है। ऐसे अनेक आलंबन हो सकते हैं जो शुद्ध चेतना के अनुभव के निमित्त बन सकते हैं। संज्ञा से मुक्त होने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय है-शुद्ध चेतना, शुद्ध उपयोग या नो-संज्ञोपयुक्त चेतना का अनुभव । संज्ञामुक्त चेतना-जहां केवल चेतना है, संज्ञा नहीं है। सूर्य चमक रहा है। कोई बादल उसको घेरे हुए नहीं है। कोरा प्रकाश आ रहा है, और कुछ भी नहीं। मूर्छाओं और संज्ञाओं से मुक्त होने का यह पहला उपाय है। इसमें धैर्य की वृत्तियों का वर्तुल : ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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