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वृत्तियों का वर्तुल
• दस प्रकार की वृत्तियां, मूर्च्छाएं या संज्ञाएं ।
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वृत्तियों को तोड़ने का उपाय
• शुद्ध चेतना का अनुभव करना ।
• आत्म सम्मोहन ।
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• केवल कुंभक ।
विशुद्धिकेन्द्र और ज्ञानकेन्द्र पर स्थिरीकरण |
• सूक्ष्म प्राणायाम |
· नो- संज्ञोपयुक्त अवस्था ।
हमारी चेतना पर मूर्च्छा और संज्ञा का आवरण है, वृत्ति और संस्कार का आवरण है, उसे हम कैसे तोड़ें ? चित्त को संज्ञामुक्त कैसे करें ? चित्त से मूर्च्छा और संस्कार को कैसे मिटाएं ? यह साधना के क्षेत्र में ज्वलंत प्रश्न है ।
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दस प्रकार की संज्ञाएं, चित्तवृत्तियां या मूर्च्छाएं हैं। वास्तव में वे एक ही हैं । आयुर्वेद का सिद्धान्त है कि बीमारी एक ही होती है । स्थान- भेद के कारण उसके अनेक नाम हो जाते हैं । दर्द दर्द है । पर उसके स्थान भेद से सिर का दर्द, घुटने का दर्द, छाती का दर्द, कंधे का दर्द, गर्दन का दर्द - आदि-आदि नाम हो जाते हैं । प्राकृतिक चिकित्सा का सिद्धांत भी यही है कि बीमारी एक ही है । शरीर में विजातीय तत्त्व संचित हो जाता है और वह बीमारी का रूप धारण कर लेता है । इसी प्रकार मूर्च्छा एक ही है । कारण-भेद के आधार पर वह अनेक प्रकार की हो जाती है। आहार के प्रति आसक्ति होती है, वह आहार संज्ञा कहलाती है ।
वृत्तियों का वर्तुल : ८३
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