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________________ ७ वृत्तियों का वर्तुल • दस प्रकार की वृत्तियां, मूर्च्छाएं या संज्ञाएं । • वृत्तियों को तोड़ने का उपाय • शुद्ध चेतना का अनुभव करना । • आत्म सम्मोहन । Jain Education International • केवल कुंभक । विशुद्धिकेन्द्र और ज्ञानकेन्द्र पर स्थिरीकरण | • सूक्ष्म प्राणायाम | · नो- संज्ञोपयुक्त अवस्था । हमारी चेतना पर मूर्च्छा और संज्ञा का आवरण है, वृत्ति और संस्कार का आवरण है, उसे हम कैसे तोड़ें ? चित्त को संज्ञामुक्त कैसे करें ? चित्त से मूर्च्छा और संस्कार को कैसे मिटाएं ? यह साधना के क्षेत्र में ज्वलंत प्रश्न है । - दस प्रकार की संज्ञाएं, चित्तवृत्तियां या मूर्च्छाएं हैं। वास्तव में वे एक ही हैं । आयुर्वेद का सिद्धान्त है कि बीमारी एक ही होती है । स्थान- भेद के कारण उसके अनेक नाम हो जाते हैं । दर्द दर्द है । पर उसके स्थान भेद से सिर का दर्द, घुटने का दर्द, छाती का दर्द, कंधे का दर्द, गर्दन का दर्द - आदि-आदि नाम हो जाते हैं । प्राकृतिक चिकित्सा का सिद्धांत भी यही है कि बीमारी एक ही है । शरीर में विजातीय तत्त्व संचित हो जाता है और वह बीमारी का रूप धारण कर लेता है । इसी प्रकार मूर्च्छा एक ही है । कारण-भेद के आधार पर वह अनेक प्रकार की हो जाती है। आहार के प्रति आसक्ति होती है, वह आहार संज्ञा कहलाती है । वृत्तियों का वर्तुल : ८३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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