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________________ से अर्थात् खेचरी मुदा करने से भूख कम हो जाती है। वर्णन मिलता है कि पहले लोग महीने-महीने की तपस्या करते और पारणे में कुश की नोक पर टिके उतना खाते । यह आश्चर्य की बात नहीं है। उनकी ग्रहणशक्ति इतनी तीव्र हो जाती है कि थोड़े से अन्न को भी इतनी सूक्ष्मता से ग्रहण करते हैं कि उतना ही उनके लिए पर्याप्त हो जाता है। दूसरी बात है कि डॉक्टरों ने जो परीक्षण किया, उसके अनुसार योग में जो नाड़ियों का विधान है, वह प्राप्त नहीं है। इस बारे में दो बातें हैं। कुछ तो, योग में इतनी सूक्ष्म नाड़ियों का प्रतिपादन है कि उनका अभी तक ठीक अर्थ समझ में नहीं आया है। जैसे मेरुदंड का योग में इतना सूक्ष्म वर्णन है कि यंत्र में उसको नहीं पकड़ा जा सकता। दूसरी बात है शब्दों की और परिभाषाओं की। आप लोग जानते हैं कि छह पर्याप्तियां होती हैं। ये पर्याप्तियां शरीर में हैं। अब कोई कहेगा कि हमारे शरीर में छह पर्याप्तियां बतलाई गयी हैं, आज डॉक्टरों और शरीरशास्त्रियों ने एक-एक अवयव को चीर-फाड़ दिया परन्तु कहीं भी पर्याप्ति तो नहीं मिली ? पर्याप्ति तो बोलती नहीं है। पर्याप्ति हमारी भाषा में है। डॉक्टर लोगों की अपनी भाषा होती है। इस सन्दर्भ में थोड़ा चिन्तन किया तो पता चला कि केवल नामों का भेद है । जैसे बृहद् मस्तिष्क मनःपर्याप्ति का स्थान है, जहां सारी शक्तियां केन्द्रित हैं। इसी प्रकार अन्यान्य पर्याप्तियों के भी स्थान हैं। आज इतना ही। ८२ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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