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________________ हुए, उसी दिन केवलज्ञानी हो गये। बड़ा गूढ़ प्रश्न है कि भगवान् महावीर को साढ़े बारह वर्षों तक कठोर साधना करनी पड़ी और मल्लिनाथ को एक दिन में ही केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। किसी को कितना समय लगा और किसी को कितना लगा । इसमें अनेक कारण हैं और सबसे महत्त्वपूर्ण कारण है, कर्म या पिछले संस्कार । आवरण को हमने कितना गाढ़ा बना रखा है। हमारा आवरण जितना गाढ़ा है उतना ही लम्बा समय लगेगा। और आवरण को हटाने में कितनी देरी करते हैं, उतना और अधिक समय लगेगा। वर्तमान के योगियों को लें तो हमें मालूम होता है कि अरविन्द ने अठारह वर्षों तक काफ़ी श्रम किया । अठारह वर्ष के बाद उन्हें ठीक रास्ता मिला । महर्षि रमण ने भी कठोर यातनाएं साधना के लिए सहन कीं । काफ़ी लम्बा समय लग सकता है। जो लोग बहुत थोड़े समय में साधना की उपलब्धि चाहते हैं वे शायद कच्चा फल तोड़कर खाना चाहते हैं जो कि खट्टा होता है। समय का परिपाक होना चाहिए । साधना में समय लगे, कोई कठिनाई की बात नहीं है । अगर हमें यह लगे कि रास्ता ठीक है, दिशा सही है, और फिर चल रहे हैं तो दो वर्ष बाद आये या दो वर्ष पहले आये, कोई चिन्ता की बात नहीं है। दिशा सही, पथ सही और गति सही, इसको विशेष ध्यान में रखना चाहिए। और ये तीनों सही हैं तो समझना चाहिए कि साधना का पथ सही है और उस पर हम अग्रसर हो रहे हैं। समय का छोटा होना और बड़ा होना कोई महत्त्वपूर्ण प्रश्न नहीं है । आचार्यश्री ने कहा- जिसमें सीधा फल पाने की भावना रहती है, मैं नहीं समझता कि वह कोई साधना है । क्योंकि उसमें तो सीधा फल पाने की भावना रहती है। अगर कोई सही मार्ग पर चल रहा है तो उसके मन में यह संदेह होना ही नहीं चाहिए कि उसकी साधना सिद्ध हो रही है या नहीं हो रही है । प्रश्न- - ऐसा सुना है कि कुछ लोग भोजन नहीं करते हैं । इसका कारण पेट का अन्दर चिपक जाना, नाड़ियों का पीछे की ओर चले जाना है या और कुछ ? योग में जिन नाड़ियों का वर्णन है वे वर्तमान शरीर - विज्ञान के अनुसार उपलब्ध हैं ? उत्तर - पेट को अन्दर चिपकाने से भूख बन्द नहीं होती । उससे तो अच्छी भूख लगती है । किन्तु एक बात अवश्य है, जठराग्नि तो प्रज्वलित होगी परन्तु अन्न की मात्रा कम हो जायेगी । अल्प मात्रा में ही तृप्ति हो जायेगी । कभी-कभी हमारे शरीर में इतना आकस्मिक परिवर्तन होता है कि हमारे शरीर को खाने की आवश्यकता नहीं होती । नाड़ियों पर घृणा, शोक, भय आदि का कभी-कभी इतना प्रभाव पड़ता है कि कुछ नाड़ियों का आहनन हो जाता है। ऐसी स्थिति में फिर खाने-पीने की आवश्यकता नहीं रहती है। पतंजलि ने भी लिखा है कि कंठकूपसंयम करो, भूख-प्यास अपने आप मिट जायेगी । जीभ को ऊपर की ओर लौटाने स्मृति का वर्गीकरण : ८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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