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________________ रूप में काम-वासना उभर आती है । काम-वासना उभरी है और यदि उस पर हमें नियन्त्रण पाना है, तो हमें यह समझना होगा कि जो सेक्स-ग्रन्थियां हैं, उनको किस प्रकार निष्क्रिय बनाया जाये ? यह सिद्धासन का विकास क्यों हुआ ? कामग्रन्थियों को निष्क्रिय बनाने के लिए ही हुआ था । यह पादांगुष्ठ-आसन का विकास क्यों हुआ ? इसीलिए हुआ कि इसके द्वारा काम-ग्रन्थियों को निष्क्रिय किया जा सकता है, उस अनुभूति को मिटाया जा सकता है। आज्ञाचक्र पर ध्यान करने की प्रक्रिया पर अधिक ध्यान क्यों दिया गया ? आज्ञाचक्र पर जब हम ध्यान केन्द्रित करते हैं, तब हमारा ज्ञानचक्र, भावनाचक्र, यानी हृदयचक्र और विशुद्धिचक्र इतने जल्दी जागृत हो जाते हैं, वे सक्रिय हो जाते कि जिससे नीचे के चक्र अपने आप ही निष्क्रिय बन जाते हैं । इन सारी प्रक्रियाओ का आशय यही था कि हमारे ज्ञानवाही तन्तुओं को, किस तन्तु को सक्रिय बनाना और किस तन्तुको निष्क्रिय बनाना, इसका ठीक-ठीक बोध यदि हमें मिल जाये तो अनावश्यक उभरने वाली स्मृतियां शांत हो जायें । इसीलिए इनका विकास किया गया था। क्या आप कल्पना करते हैं, हमारे शरीर की रचना को और शरीर में हमारे ज्ञान के तन्तुओं को समझे बिना हम ठीक योग की बात को समझ लेंगे ? या मन को वश में करने की बात समझ लेंगे ? मैं समझता हूं कि ऐसा नहीं सोचा जा सकता । और जबकि सिद्धान्ततः हम यह मान चुके हैं, कि हमारी सारी चेतना जो अभिव्यक्ति होती है वह सारी की सारी शरीर के माध्यम से ही होती है । शरीर के माध्यम के बिना, चेतना का चाहे जितना विकास हो, आपके कोई काम का नहीं हो सकता । इन्द्रिय की उपलब्धि और उपयोग हो सकता है किन्तु आकार, रचना और उपकरण ठीक नहीं है, इन्द्रियां कुछ काम नहीं देंगी । मानसिक विकास बहुत अच्छा है, किन्तु मस्तिष्क आहत हो गया तो मन कोई काम नहीं देगा । आपने जोधपुर के लोढाजी के बारे में पढ़ा होगा कि मस्तिष्क पर कोई ऐसा धक्का लगा कि पांच-सात वर्ष तक केवल यन्त्र की तरह जीते रहे । उनको कोई स्मृति नहीं थी । वह आहनन मिटा । चेतना लौटी तो सारे कार्य पूर्ववत् करने लगे । किन्तु जब तक मस्तिष्क आहत था, मन काम नहीं दे रहा था । इस प्रकार चेतना को बाहर लाने का जो साधन है, वह शरीर है। इसीलिए शरीर पर हमें इतना बल देने की ज़रूरत है कि साधना की दृष्टि से शरीर को समझना हमारे लिए बहुत आवश्यक है । अगर साधना की दृष्टि से शरीर को न समझें तो जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां पहुंचने में बाधा हो सकती है । स्मृति- शून्यता को समझने के पूर्व हमें यह जान लेना है कि किन कारणों से स्मृति की उत्तेजना होती है ? उन कारणों को गौण कर दें, स्मृति-शून्यता अपने आप ही आ जायेगी । हमारी स्मृति को सबसे पहले मन उत्तेजित करता है, दूसरे में शरीर और तीसरे में श्वास । सबसे सूक्ष्म चोट होती है श्वास की । इसीलिए स्मृति का वर्गीकरण: ७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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