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है, और वह शक्ति इतनी सूक्ष्म और दूरगामी हो जाती है कि वह हमारे विचार के प्रकम्पनों को हमारे संकल्प के स्थान तक ले जाती है ।
यह निरुद्ध स्मृति प्रकम्पन का सिद्धान्त है । हमारी स्मृति को एक दिशा में इतना प्रवाहित करना कि जिससे एक ऐसी धार बन जाये, कि वह धार इतनी सशक्त बने जहां हम उसे पहुंचाना चाहते हैं, वहां तक पहुंच जाये । इन्दौर में नेमीचन्दजी मोदी थे । वे विचार संप्रेषण का बहुत प्रयोग करते थे । एक बार उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि जब सन्तान हो, उस समय मुझे याद करना । वे थे इन्दौर में और पत्नी थी किशनगढ़ में । काफी दूर थे । पत्नी ने याद किया और उन्होंने अपने घरवालों को बता दिया कि अमुक समय में मेरे सन्तान हुई है । फिर ठीक उसका प्रामाणिक संवाद मंगाया गया। तो पता चला कि दो घंटे के पश्चात् यह समय निकलता है। यानी सन्तान दो घंटे पहले पैदा हो गयी थी । फिर जांच की गयी कि ऐसा क्यों हुआ ? तब पता चला कि दो घंटा तक पत्नी बेहोश रही । और जब स्मृति आयी, तब याद किया । और जब याद किया, वह समय ठीक उन्होंने नोट कर लिया। यानी जागृत होने पर संप्रेषण हुआ ।
स्मृति को जब हम एक जगह रोक लेते हैं, एक दिशा में प्रवाहित करते हैं, तो हमारे प्रकम्पन की क्षमता बढ़ जाती है । अगर दोनों ओर से हो तो और अधिक सुविधा हो जाती है । कभी-कभी दो व्यक्ति एक समय में ही एक विचार प्रकट करते हैं। आश्चर्य होता है कि दोनों की शब्दावली भी एक ही होती है । यह अनुभव की बात है । कभी-कभी ऐसा हो जाता है ।
अब प्रश्न है कि निरुद्ध स्मृति कैसे हो ? उसके लिए हमें नाड़ियों का बोध होना बहुत अपेक्षित है । हमारे शरीर में जो नाड़ियां हैं, उनमें कुछ हैं ज्ञानग्राही और कुछ हैं ज्ञानवाही । इन दोनों का बोध होना बहुत ही ज़रूरी है। मैं समझता हूं कि जिसे यह ठीक बोध नहीं होता, वह ठीक योगी भी नहीं हो सकता। कौनसीनाड़ी कहां से चलती है और कहां जाकर अपना काम शुरू करती है, इसका ज्ञान होना चाहिए। आंख हमारी बिलकुल ठीक है । कोई गड़बड़ नहीं है । किन्तु मस्तिष्क में जहां आंख को शक्ति देने का यन्त्र है, उसे आप काट दीजिये । आंख बिलकुल ठीक है पर दिखायी नहीं देगा। बृहद् मस्तिष्क में जो श्रोत्रग्राही तंतु है, इसे हम अपनी भाषा में उपकरण कह सकते हैं, उसे आप काट दीजिये । कान ठीक है, पर्दा ठीक है, शब्द हो रहा है तेज़, पर सुनायी कुछ भी नहीं पड़ेगा । हमारे शरीर में जो मुख्य-मुख्य ग्रंथियां हैं, इनके द्वारा हमारे शरीर और मन का बहुत नियंत्रण होता है । पीच्युटरी जो हमारे मस्तिष्क के मध्य में एक आधा इंच की ग्रन्थि है, वह ग्रन्थि अगर विकसित नहीं होती, तो ज्ञान होने पर भी ज्ञान के उपयोग की क्षमता हमारे में नहीं होती। हम काम नहीं ले सकते। जिस व्यक्ति की जननेन्द्रिय की ग्रन्थियां, सेक्स की ग्रन्थियां बहुत सक्रिय हो जाती हैं, विचित्र
७८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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