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जाती है। और उससे भी उसका संक्षिप्त रूप यह होता है कि उस स्मृति को हमने किसी एक बिंदु पर टिका दिया। चाहे किसी शब्द पर, चाहे किसी रूप पर, चाहे परमाणु पर, चाहे किसी स्थूल वस्तु पर हमने टिका दिया। वह हमारी होती है एकबिंदु-अनुगत स्मृति । ___अंतिम है स्मृति-शून्यता। बिलकुल स्मृति से शून्य हो जाना । स्मृति से शून्य होने का मतलब है, हम चेतना के स्तर पर चले गये। हमारी चेतना स्मृति से अतीत, विचार से अतीत और कल्पना से अतीत है।
वीतराग चेतना होने के बाद न कोई स्मृति होती है, न कोई कल्पना होती है और न कोई विचार होता है। यह स्मृति होती है इन्द्रिय के स्तर पर, मानस के स्तर पर, जब हमारी चेतना होती है । और स्मृति होती है, तब हमारे मन में विचार होता है। स्मति के बिना कोई विचार हो नहीं सकता। जिसमें स्मृति नहीं है, उसमें विचार भी नहीं है । और जहां विचार और स्मृति नहीं है, वहां कल्पना भी नहीं हो सकती । विचार और कल्पना, इन दोनों का मूल आधार है स्मृति । यानी स्मृतिमूलक विचार और स्मृतिमूलक कल्पना। ये सारे स्मृति के कारण होते हैं। चंचलता का मतलब है स्मृति। मन में छेद होने का मतलब है स्मृति । स्मृति आती है, मन में छेद डाल जाती है। मन का पानी टिकता नहीं, झरने लग जाता है । मन चंचल हो जाता है, उद्विग्न हो जाता है। सारी बात का मूल है स्मृति।
बात अच्छी है कि स्मृति को हम निरुद्ध कर दें। स्मृति-शून्य बनें, पर कैसे बनें ? मूल प्रश्न तो यह है कि कैसे बनें ? और इस बनने में शरीर का, हमारे नाड़ी-संस्थान का और हमारे श्वास का योग क्या है ?
हमारी स्मृति जागृत क्यों होती है ? उत्तेजना के कारण स्मृति जागत होती है। बाह्य उत्तेजना मिलती है, स्मृति जागृत होती है। हम जब-जब उत्तेजना को पकड़ते हैं, तब-तब स्मृति जागृत होती है। स्मृति जागृत होती है प्रकम्पन के द्वारा। अगर प्रकम्पन न हो तो स्मृति जागृत नहीं हो सकती। जो बात धारणा में है, वह धारणा में रह जायेगी, धारणा उबुद्ध नहीं होगी। और धारणा जागृत हुए बिना स्मति जागृत नहीं होती। स्मृति के जागरण का मतलब है धारणा का, संस्कार का उबुद्ध होना, जागृत होना । वह होता है प्रकम्प के द्वारा। ___हमें प्रकम्पन के सिद्धांत को समझ लेना बहुत ज़रूरी है। प्राचीन काल में चीन में एक स्कूल चलता था। उसका नाम था मिंगचायी। स्कूल से मतलब विद्यालय नहीं बल्कि एक सम्प्रदाय से है। उस सम्प्रदाय का काम था व्यक्तियों
और वस्तुओं के नामों का निर्धारण करना । उनका यह मानना था कि व्यक्ति या वस्तु के जो नाम रखे जाते हैं, अगर नाम ठीक नहीं होता है तो उसके द्वारा होने वाला प्रकम्पन ठीक नहीं होता । उससे हमारी शक्ति का ह्रास हो जाता है। और
७६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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