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की शक्ति तेज़ हो जाएगी, प्रबल हो जायेगी। ओंकार का जप कीजिये तो मकार की ध्वनि से जो हनन होगा मस्तिष्क में, आपकी स्मृति शक्ति तेज हो जाएगी । ये सारे-के-सारे धारणाशक्ति को पुष्ट करने के लिए, शक्तिशाली बनाने के लिए, वैद्यों ने, डॉक्टरों ने, यौगिक आचार्यों ने, भिन्न-भिन्न प्रकार से, अपने-अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किये। उनका उपयोग भी है तथा आज भी किया जाता है ।
यहां तक साधना का कोई बड़ा मूल्य नहीं है । साधना का मूल्य अब आगे शुरू होता है । जब हमारी स्मृति ठीक होती है, स्मृति अपना काम ठीक करती है तो हम असंबद्ध स्मृति से हटकर, संबद्ध स्मृति की भूमिका में आ जाते हैं । स्मृति जो विक्षेप है, वह हमारा कम हो जाता है । अन्यथा होता क्या है; बैठते हैं भोजन करने के लिए और दुनिया भर की बातें याद आने लग जाती हैं । वह हमारा स्मृति का विक्षेप है, असंबद्ध स्मृति है । पागल आदमी कौन होता है ? पागल वह होता है, जिसकी धारणा प्रसक्ति होती है। एक बात को पकड़ लेता है, उसकी रट छोड़ता नहीं है । वह धारणा का वेग इतना बलवान हो जाता है कि आदमी पागल बन जाता है। एक बात की रट लगाये रहता है । वह बात भुलाए नहीं भूली जाती । पागल हो जाता है । यह है स्मृति का आवेग, धारणा का प्रसारक और धारणा की प्रसक्ति । तो असंबद्ध स्मृति से संबद्ध स्मृति में आना, एक भूमिका होती है ।
अब संबद्ध स्मृति में हमें कहां जाना है साधना की दृष्टि से ? वहां हमारी दो भूमिकाएं और होती हैं । एक है निरुद्ध स्मृति की भूमिका, दूसरी है स्मृति शून्यता की भूमिका । निरुद्ध स्मृति, यानी स्मृति को एक दिशा में प्रवाहित करना । निरुद्ध करना । निरुद्ध का मतलब रोकना नहीं है । निरुद्ध का मतलब है एक चीज़ में लगा देना, व्याप्त कर देना ।
सकता,
ध्यान क्या है ? एकाग्रे चिन्तानिरोधो ध्यानम् -- एक आलम्बन पर चिंतास्मृति को व्याप्त कर देना ध्यान है । एक व्यक्ति को एक मकान में बंद कर दिया गया, रोक दिया गया। इसका मतलब यह नहीं कि वह कमरे में घूम-फिर नहीं किंतु उस मकान से बाहर नहीं जा सकता। एक धारावाही जो स्मृति हो जाती है, एक दिशागामी जो स्मृति हो जाती है, वह होती है निरुद्ध स्मृति । यहां से साधना का क्रम प्रारंभ हो जाता है। स्मृति को धारावाही बनाना, एक दिशागामी बनाना, एक दिशा में उसका बहाव कर देना जिससे कि उसका भटकाव न हो, और उसके द्वारा उत्पन्न होने वाली शक्ति या ऊर्जा बिखरे नहीं, यह है निरुद्ध स्मृति ।
निरुद्ध स्मृति दो प्रकार की होती है- विषयानुगत और एकत्रिदु अनुगत । यानी शब्दानुगत या रूपानुगत । एक विषय में एक स्मृति का बहाव कर दिया, वह विषयानुगतस्मृति होती है । यानी उस विषय से बाहर हमारी स्मृति नहीं
स्मृति का वर्गीकरण : ७५
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