SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विस्मृति । यानी बिलकुल ही भूल जाना । अभी कहा और दो मिनट के बाद भूल जाते हैं । भुलक्कड़ स्वभाव हो जाता है । ये सारे असंबद्ध स्मृति के स्रोत हैं या उसके पर्याय हैं । असंबद्धता - संबंधहीन स्मृति होना, स्मृति का विपर्यय होना, स्मृति का आवर्तन होना और विस्मृति होना - यह सारा एक वर्ग में आ जाता है । ऐसा क्यों होता है ? मनोविज्ञान ने इसका कारण माना है, संस्कार - प्रसक्ति । यानी असंबद्ध स्मृति क्यों होती है ! एक स्मृति बार-बार क्यों आती है ? यहां संस्कार की प्रसक्ति हो जाती है, संस्कार इतना गाढ़ जम जाता है कि फिर छुटाए नहीं छूटता है । स्मृति अपने आप में कोई चीज़ नहीं है । वह तो केवल अभिव्यक्ति है। मूल चीज़ है धारणा, संस्कारकोष । वह है मूल । संस्कारकोष अगर ठीक होता है तो स्मृति ठीक हो जाती है । संस्कारकोष में अगर गड़बड़ियां होती हैं तो स्मृति गड़बड़ी हो जाती है । इसीलिए भारतीय वैद्यों ने कुछ औषधियों का आविष्कार किया । ब्राह्मी, सारस्वत चूर्ण, मालकांगनी आदि-आदि औषधियों का आविष्कार किया । यदि धारणाशक्ति दुर्बल हो गयी तो इन औषधियों का उपयोग करो, धारणाशक्ति पुष्ट हो जायेगी। स्मृति में गड़बड़ी नहीं होगी। मालकांगनी का, ब्राह्मी का सेवन करने वाले लोग स्मृति का, धारणाशक्ति का बहुत विकास कर लेते हैं । पंडित रघुनन्दनजी बहुत बार कहा करते थे कि जब मैं विद्यार्थी था, ब्राह्मी के पत्ते बहुत खाता था । उनकी स्मृति भी बहुत विलक्षण हो गयी थी । धारणाशक्ति बहुत प्रबल हो गयी थी कि सैकड़ों सैकड़ों श्लोक एक दिन में याद कर लेते थे । आश्चर्य होगा सुनकर कि चरक और सुश्रुत जैसे ग्रंथ लगभग कंठस्थ जैसे हो गये थे। काफी श्लोक वे याद कर लिया करते थे । धारणाशक्ति का विकास इन द्रव्यों से होता है । प्रज्ञापना सूत्र की वृत्ति में यह बतलाया गया है कि ब्राह्मी आदि के सेवन से मतिज्ञान की शक्ति पुष्ट हो जाती है । मतिज्ञान की शक्ति बढ़ जाती है । होमियोपैथी में इस पर बहुत विचार किया गया है। और वहां तो एक-एक चीज़ के लिए औषधि का विधान किया गया है। आवेश के कारण स्मृति क्षीण हो तो अमुक औषधि ली जा सकती है। एक-एक औषधि के पीछे उसका लक्षण तथा सारा वर्णन मिलेगा । योग की पद्धति ने आसनों का विधान किया । स्मृति दुर्बल है, धारणाशक्ति दुर्बल है तो आप शीर्षासन कीजिए, सर्वांगासन कीजिये, जालन्धर बंध कीजिये । रंग चिकित्सा और रंगों की पद्धति में रंगों का विधान किया। स्मृति की दुर्बलता है, धारणाशक्ति कमजोर है तो आप अपने मस्तिष्क में पीले रंग का दस मिनट तक चिंतन कीजिये, दस मिनट तक धूसर वर्ण का चिंतन कीजिये, आपकी धारणा ७४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy