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________________ ३. निरुद्ध स्मृति ४. स्मृति-शून्यता। पहली है-संबद्ध स्मृति, सामान्य स्मृति । जो बात हम याद करते हैं, वह बात हमें याद आती चली जाती है। मनुष्य में सामान्य स्मति होती है और उसी के आधार पर ही जीवन का काम चलता है । अगर स्मृति नहीं होती तो आप लोग यहां एकत्र नहीं होते। स्मृति है कि आज एक बजे गोष्ठी में पहुंचना है। यह धारणा थी, स्मति हुई और सब लोग यहां एकत्रित हो गये । स्मृति होती है, तब हम खाते हैं । स्मृति होती है, तब हम बातचीत करते हैं। स्मृति होती है, तब हम व्यवहार करते हैं । स्मृति के बिना हमारे जीवन का कोई भी काम नहीं चलता। यह है हमारी सामान्य स्मृति जो कि हमारे सारे व्यवहार का संचालन करती है। किंतु इस स्मृति में भी एक कठिनाई पैदा हो जाती है। वह है असंबद्ध स्मृति । यानी स्मृति अस्त-व्यस्त हो जाती है। संबंधहीन स्मृति होने लग जाती है। एक बात याद करनी शुरू की और बीच में इतनी बातें याद आने लग जाती हैं कि स्मति अस्त-व्यस्त होने लग जाती है। वह होती है असंबद्ध स्मति । असंबद्ध स्मति में कोई संबंध नहीं रहता। संबंध टूट जाता है। तो एक होती है संबद्ध स्मृति और दूसरी होती है असंबद्ध स्मृति, जिसे विक्षेप या पागलपन भी कहा जाता है। असंबद्ध स्मति के कई रूप होते हैं। जैसे स्मृति का आवर्तन । एक बात याद आ गयी । सर्दी तो चली गयी, दोपहर का समय आ गया, फिर भी सर्दी खूब थी, यह विचार मन में चक्कर काटता रहा । वह स्मृति छोड़ने से भी छुटती नहीं है । स्मृति का आवर्तन होता रहता है । यह असंबद्ध स्मृति के कारण ऐसा होता है। एक होता है स्मृति का विपर्यय । कहा कुछ और याद कुछ रहा। कहा था कि तुम्हें भीनासर जाना है किंतु चला और चलते ही भूल गया। बीकानेर की ओर चला गया। ऐसा होता है बहुत बार। कहा-चार बजे बातचीत करने के लिए आना है। पांच बजे पहुंचा और जब पूछा कि इतनी देरी से क्यों आये तो उत्तर मिला कि आपने मुझे पांच बजे के लिए ही कहा था। यह स्मृति का विपर्यय हो जाता है। देश का विपर्यय, काल का विपर्यय, वस्तु का विपर्यय हो जाता है। ____ आचार्य ने शिष्य को बताया-तुम्हें साधना के मार्ग में जाना है। और मैं तुम्हें एक सूत्र देता हूं। जीव देह से भिन्न है -यह सूत्र दे दिया। कुछ दूर रटता रहा, फिर भूल गया। आगे गया। देखता है कि एक खलिहान में तुष अलग किये जा रहे हैं। मासे अलग किये जा रहे हैं। उसने देखा। याद आ गया। ओह ! आचार्यजी ने यही कहा था-तुाषणां मासो भिन्नः । तुष से मास भिन्न है। कितना विपर्यय हो गया। कहा था कुछ, याद रहा कुछ। वह उस बात को भूल गया कि 'जीवो देहाद भिन्नः।' इस प्रकार स्मृति का विपर्यय भी होता रहता है। स्मृति का आवर्तन होता है। स्मृति का विपर्यय होता है। और एक होती है स्मृति का वर्गीकरण : ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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