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व्यक्ति रेशमी धागे को पकड़ लेता है, उसके हाथ में पतला धागा आ जाता है। जिसके हाथ में पतला धागा आ जाता है, उसके हाथ में मोटा धागा आ जाता है। जिसके हाथ में मोटा धागा आ जाता है, उसके हाथ में रस्सा आ जाता है।
और जिसके हाथ में रस्सा आ जाता है, वह उतर जाता है, मुक्त हो जाता है। गहराई में चला जाता है।
यह श्वास रेशमी धागा है। यह हाथ में आता है तो पतला धागा अर्थात् नाड़ियां हाथ में आ जाती हैं। जब नाड़ियां पकड़ में आ जाती हैं तो विचार का धागा भी पकड़ में आ जाता है। और जब विचार का धागा पकड़ में आ जाता है तो प्राण का रस्सा भी हमारी पकड़ में आ जाता है और उसके सहारे हम मुक्त हो जाते हैं, उतर जाते हैं चेतना की गहराई में। चेतना की गहराई में चले जाते हैं तो बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। .. श्वास, नाड़ियां, विचार और प्राण को समझने की आवश्यकता है। प्राण की गहराई में गये तो चेतना की गहराई में जाने का द्वार हमारे लिए खुल जाता है, उन्मुक्त हो जाता है । यह बहुत ही मर्म और रहस्य की बात है। श्वास को समझे बिना हम नाड़ियों को नहीं समझ सकते। नाड़ियों को समझे बिना हम विचार को नहीं समझ सकते। विचार को समझे बिना हम प्राण को नहीं समझ सकते। प्राण को समझे बिना हम चेतना की गहराई में नहीं जा सकते और जहां हमें पहुंचना चाहिए, वहां नहीं पहुंच सकते।
हमें पहुंचना है चेतना की गहराई में। किंतु यह पहुंचने का जो रास्ता है, पहुंचने का जो क्रम है, उसे छोड़कर हम पहुंचने का प्रयत्न करते हैं, तो शायद हम उलझ जाते हैं, बीच में लटक जाते हैं और ऐसा महसूस होता है कि हमने इतना प्रयत्न किया किंतु जहां पहुंचना था, वहां पहुंच नहीं पाये। इसीलिए श्वास को समझना ज़रूरी है। इसके संबंध में पहले भी अपनी चर्चा हो चुकी है और काफी बातें प्रस्तुत भी की जा चुकी हैं। पिछली गोष्ठी में नाड़ियों के संबंध में भी चर्चा हुई थी कि हमारे जो तंतु हैं, संपूर्ण नाड़ी-संस्थान है, उसे हम नहीं समझते हैं तो शायद विचारों को समझने में हमें कठिनाई होगी। उसे समझना बहुत ज़रूरी है और उसे समझ लेते हैं तो विचारों को समझने में कठिनाई विशेष नहीं होती है। विचार से मतलब यहां चिंता या स्मृति से है । हमारी सारी कठिनाई क्या है ? यह स्मति की कठिनाई है। स्मृति का छेद ऐसा है कि उसमें से सब कुछ झरता रहता है। इसलिए हमें आज गहराई से और विस्तार से स्मृति को समझना है।
हमारे जीवन का बहुत सारा व्यवहार स्मृति के सहारे चलता है, स्मृति के आधार पर चलता है । स्मृति के चार प्रकार हैं :
१. संबद्ध स्मति
२. असंबद्ध स्मृति ७२ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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