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चेतना और अभिव्यक्त चेतना-ये चेतना के दो स्तर बन जाते हैं। अनावत चेतना, चेतना का अस्तित्व है और वह अपने स्वरूप में रहती है। किंतु उसकी जितनी अभिव्यक्ति है, वह सारी-की-सारी शरीर के माध्यम से होती है। चाहे इंद्रियों की अभिव्यक्ति, चाहे मन की अभिव्यक्ति। इंद्रिय चेतना हमारे गोलकों के माध्यम से अभिव्यक्त होती है।
चक्षु एक गोलक है, उससे देखने की चेतना अभिव्यक्त होती है। श्रोत्र का गोलक है, सुनने की चेतना अभिव्यक्त होती है। तो सारी अभिव्यक्ति इंद्रियों के माध्यम से यानी शरीर के माध्यम से होती है। मन अपना काम करता है। मन के स्तर की चेतना अभिव्यक्त होती है मस्तिष्क के माध्यम से । या मेरुदंड के माध्यम से। बृहद् मस्तिष्क, लघु मस्तिष्क और मेरुदंड के माध्यम से मानसिक चेतना अभिव्यक्त होती है। चाहे ऐद्रिक स्तर की चेतना हो, चाहे मानसिक स्तर की चेतना, दोनों अभिव्यक्त होती हैं शरीर के माध्यम से। इसीलिए हमें शरीर के रहस्य का समझना बहुत जरूरी है। मैं समझता हूं कि जो व्यक्ति शरीर के रहस्यों को नहीं समझता, वह अपनी चेतना की अभिव्यक्ति ठीक नहीं कर पाता। और उस अनावृत चेतना तक पहुंचने में भी उसे कठिनाई होती है।
एक मंत्री था। राजा क्रुद्ध हो गया। मंत्री को ऊंचे बुर्ज पर कैद कर दिया। पत्नी उसकी पतिव्रता थी। वह रोज़ पति का दर्शन करने के लिए आती। आती और देखकर चली जाती। कुछ दिन बीते, पत्नी ने पूछा-आप मुक्त कैसे हो सकते हैं, कोई उपाय बताइये? आप आखिर मंत्री हैं, बुद्धिमान हैं, कोई उपाय सुझाइये । मंत्री ने कहा-एक उपाय हो सकता है । कल तुम कुछ चीजें ले आओ। पत्नी ने कहा-क्या चीजें लाऊं ? मंत्री ने कहा---एक लाना भंवरा, थोड़ा-सा शहद और एक रेशमी धागा। एक सूती धागा तथा एक मोटा धागा और एक लाना रस्सा। दूसरे दिन वह आयी और सारी चीजें अपने साथ लायी। मंत्री बुर्ज पर बैठा है। वह नीचे आकर खड़ी हो गई। जैसे बताया था उस विधि से उसने किया। भंवरे के रेशमी धागा बांध दिया। रेशमी धागे से पतला धागा बांध दिया, पतले धागे से मोटा धागा बांध दिया और फिर उसके साथ रस्सा बांध दिया। फिर थोड़ा-सा शहद भंवरे के माथे पर लगाया और छोड़ दिया। भंवरे को शहद की गंध आती है। वह ऊपर की ओर जाता है। सोचता है कहीं ऊपर से गंध आ रही है। वह ऊपर की ओर उड़ा। मंत्री बुर्ज पर बैठा था। उसने भंवरे को पकड़ लिया। . मंत्री ने रेशमी धागे को खींचा तो छोटा धागा आया। उसे खींचा तो पतला धागा आया। उसे खींचा तो मोटा धागा और उसे खींचा तो मोटा रस्सा हाथ में आ गया। रस्से को ठीक से बांधा और उसके सहारे नीचे उतरकर भाग गया।
यह एक बौद्धिक-सी बात लगती है पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण रूपक है। जो
स्मृति का वर्गीकरण : ७१
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